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चल तक नहीं सकता। उसका संतुलन खो जाता है। केवल शरीर का ही नहीं, मन के भीतर भी उसका संतुलन खो जाता है।
ध्यान का अर्थ है, एक आंतरिक संतुलन पाना। जब तुम आंतरिक संतुलन प्राप्त करते हो, और कोई कंपन नहीं रहता;जब सारा शरीर और मन स्थिर बन जाता है, तब सम्यक ज्ञान का केंद्र कार्य करना शुरू करता है। उस केंद्र द्वारा जो कुछ भी जाना जाये, वह सत्य होता है।
___लेकिन तुम कहां हो? तुम शराबी नहीं हो और न ध्यानी हो। तो तुम्हें दोनों के बीच कहीं होना चाहिए। तुम किसी केंद्र में नहीं हो। तुम सम्यक ज्ञान और मिथ्या ज्ञान के इन दोनों केंद्रों के बीच हो। इसलिए तुम उलझ गये हो।
___ कई बार तुम्हें झलकें मिलती है। तुम सम्यक जान के केंद्र की तरफ थोड़ा झुकते हो और तब कुछ झलकें तुम्हें मिलती हैं। या तुम विकृति के केंद्र की तरफ झुकते हो और तब विकृति तुममें प्रविष्ट होती है। हर चीज तुममें मिश्रित हो गई है; तुम अंध-व्यवस्था में पड़े हो। इसलिए तुम्हें या तो ध्यानी बनना होता है और या तुम शराबी बन जाओगे, क्योंकि उलझन बहुत ही कठिन होती है। और ये ही दो रास्ते हैं।
यदि तुम स्वयं को नशे में डुबा लेते हो, तब तुम चैन पाते हो। कम से कम तुमने एक केंद्र प्राप्त कर लिया होता है। हो सकता है यह केंद्र मिथ्या ज्ञान का हो, लेकिन चाहे जो हो, तुम केंद्रीभूत होते हो। चाहे सारा संसार कहे कि तुम गलत हो, लेकिन तुम ऐसा नहीं सोचते। तुम सोचते हो कि सारा संसार गलत है। लेकिन बेहोशी के उन क्षणों में कम से कम तुम केंद्रीभूत तो होते हो; लेकिन मिथ्या के केंद्र में केंद्रित होते हो। लेकिन तुम प्रसन्न होते हो, क्योंकि मिथ्या के केंद्र मै केंद्रित होना भी एक निश्चित सुख देता है। तुम इसका रस लेते हो। इसलिए शराब के लिए इतना अधिक आकर्षण
सदियों से सरकारें इसके विरोध में लड़ रही हैं। नियम बनाये गये हैं, नशेबंदी के और सब कछ किया गया, लेकिन कछ नहीं हो पाया। जब तक मानवता ध्यानमय नहीं हो जाती, तब तक कोई चीज मदद नहीं कर सकती। लोग यही किये जायेंगे। वे नये तरीके और नये साधन ढूंढ लेंगे नशा करने के। उन्हें रोका नहीं जा सकता। और जितना अधिक उन्हें रोकने का प्रयास होगा,जितने अधिक मदय-निषेध के नियम होंगे, नशे के लिए उतना अधिक आकर्षण होगा।
अमरीका ने यह प्रयत्न किया और उसे पीछे हटना पड़ा। उन्होंने पूरी कोशिश की, लेकिन जब शराबबंदी की गयी, तो और अधिक शराब इस्तेमाल की जाने लगी। उन्होंने प्रयत्न किया, परंतु वे असफल रहे। और स्वतंत्रता के बाद भारत भी शराब से पीछा छुड़ाने की कोशिशें करता रहा है। ऐसा करने में वह असफल रहा और बहुत से प्रांतो ने इसे फिर से प्रारंभ कर दिया है। निषेध का प्रयास ही व्यर्थ लगने लगा है।