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कहते है। मन का एक केंद्र है जो किसी भी चीज को विकृत कर सकता है। जैसे ही यह केंद्र कार्य करना प्रारंभ करता है, हर चीज विकृत हो जाती है।
मुझे एक कहानी याद आती है। एक बार ऐसा हुआ कि मुल्ला नसरुद्दीन और उसके मित्र एक मदिरालय मे शराब पी रहे थे। जब वे वहाँ से उठे तो वे पूरी तरह नशे में धुत्त हो चुके थे। और नसरुद्दीन एक पुराना, अनुभवी शराबी था। दूसरा अभी नया था इसलिए उस पर ज्यादा असर हो गया। वह कहने लगा, 'अब मैं देख नहीं सकता, मैं सुन नहीं सकता, मैं ठीक से चल तक नहीं सकता। मैं अपने घर कैसे पहुंचूंगा? तुम मुझे बताओ नसरुद्दीन! कृपा कर के मुझे राह दिखाओ। कैसे मुझे घर पहुंचना चाहिए ?'
नसरुद्दीन बोला, 'पहले तुम जाओ। इतने कदम चलने पर तुम एक जगह पहुंचोगे जहां दो रास्ते हैं। एक दायीं और जाता है, दूसरा बायी ओर। तुम बायीं और जाओ, क्योंकि वह रास्ता जो दायी और जाता है वह है ही नहीं। मैं उस दायीं और के रास्ते पर बहुत बार गया, लेकिन अब मैं एक अनुभवी आदमी हूं। ध्यान रखना, तुम दो रास्ते देखोगे। बायीं ओर वाला चुन लेना, दायीं ओर वाला मत चुनना। वह दायीं ओर वाला रास्ता है ही नहीं। मैं उस पर बहुत बार जा चुका हूं लेकिन फिर कही पहुँचना नहीं होता। तुम अपने घर कभी नहीं पहुचते।' एक बार नसरुद्दीन अपने बेटे को शराब पीने का पहला पाठ पढ़ा रहा था। बेटा बहुत उत्सुक था। इसलिए अपने पिता से बोला, 'कब रुकना होता है?' नसरुद्दीन ने कहा, 'उस मेज को देखो। चार आदमी वहां बैठे हुए है। जब तुम्हें आठ दिखने लगें, रुक जाना।' लड़के ने कहा, 'लेकिन पिताजी, वहां तो केवल दो आदमी बैठे हैं?
यह भी मन की क्षमता है। यह क्षमता कार्य करती है, जब कभी तुम किसी नशे के, किसी मादक पदार्थ के प्रभाव में होते हो। यह वह मानसिक क्षमता है, जिसे पतंजलि विपर्यय कहते हैंमिथ्या ज्ञान; विकृति का केंद्र। इसके ठीक विपरीत सामने एक केंद्र है जिसके बारे में तुम कुछ नहीं जानते हो। इससे ठीक विपरीत एक केंद्र है। यदि तुम गहराई से मौनपूर्वक ध्यान करो, तो वह दूसरा केंद्र कार्य करना शुरू कर देगा। वही केंद्र प्रमाण कहलाता है-सम्यक ज्ञान। उस केंद्र के कार्य करने पर जो कुछ जाना जाये वही ठीक होता है। तो प्रश्न यह नहीं है कि तुम क्या जानते हो, प्रश्न यह है कि तुम कहां से जानते हो।
इसलिए सारे धर्म शराब के विरुद्ध रहे हैं। ऐसा किसी नैतिकतावादी आधार पर नहीं होता रहा है। नहीं। ऐसा है क्योंकि शराब विकृति के केंद्र को प्रभावित करता है। और प्रत्येक धर्म ध्यान के लिए कहता है क्योंकि ध्यान का अर्थ है. अधिक से अधिक शांति का निर्माण करना, अधिक से अधिक मौन हो जाना।
शराब इसके बिलकुल विपरीत किये चली जाती है। वह तुम्हें ज्यादा से ज्यादा भड़काती, उत्तेजित करती, अशांत बनाती है। तुम में एक कंपकंपी प्रविष्ट हो जाती है। शराबी ठीक से