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यशस्तिलक में सोमदेव ने भी चैत्रशुदी त्रयोदशी शकसंवत् ८८१ को कृष्णराज तृतीय का निवास मेलपाटी में ही व्यक्त किया है। इस से यह सिद्ध होता है कि मेलपाटी राष्ट्रकूट सम्राट् कृष्ण तृतीय का कुछ समय तक सैनिक शिविर अवश्य रहा था ।
कृष्ण तृतीय के मेलपाटी शिविर का वर्णन पुष्पदन्त के महापुराण में भी मिलता है । इस ग्रन्थको रचना ९५९ ६० में प्रारम्भ हुई तथा १६५ ई० में यह प्रन्थ समाप्त हुआ । पुष्पदन्त के पाटी वर्णन एवं कृष्ण तृतीय के दक्षिणी राज्यों की विजयों के उल्लेख से भी सोमदेव के कथम की पुष्टि होती है ।
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मुलवाडदानपत्र में भी कृष्ण तृतीय का उल्लेख महान् सम्राट् के रूप में किया गया है और चालुश्य राजाओं को उन का महासामन्त बतलाया गया है । ऐतिहासिक विवरण से भी उपर्युक्त दानपत्र के वर्णन को पुष्टि होती है। दक्षिण के इतिहास के अवलोकन से ज्ञात होता है कि कृष्णराजदेव राष्ट्रकूट वंश के सम्राट् थे और यह अमोघवर्ष तृतीय के पुत्र थे । कृष्णराज तृतीय का सिंहसनारोहण काल ९३९६० माना गया है। इन की राजधानी मान्यखेट थी । कृष्णराज तृतीय की राजधानी एवं राज्यकाल की पुष्टि हिस्ट्री ऑफ़ कनारी लिटरेचर के लेखक के इस वर्णन से भी होती है - पोश कवि को उभयभाषाविचक्रवर्ती को उपाधि से विभूषित करने वाले राष्ट्रकूट सम्राट् कृष्णराजदेव ने मान्यखेट में ९३९ ई० से ९६८ ई० तक राज्य किया। स्व० पं० नाथूराम प्रेमी ने लिखा था कि मान्मखेट का ही प्राचीन नाम मेलपाटी होगा,
जिसे सोमदेव ने
राजदेव की राजधानी बतलाया है। अब जो तथ्य सामने आये हैं उन से निश्चित हो चुका है कि ये दोनों स्थान भिन्न-भिन्न है, एक ही स्थान के दो नाम नहीं हैं 1 मान्यखेट राष्ट्रकूट सम्राट् कृष्णराजदेव की राजधानी यो तथा मेलपाटी वह स्थान है जहाँ पर कृष्णराजदेव ने अपने सैनिक अभियान के समय अपनी विजयी सेवाओं के साथ कुछ समय के लिए अपना सैनिक शिविर स्थापित किया था। करहृद ताम्रपत्र में उल्लि खित शेव संन्यासी को दिये गये ग्रामदान की आज्ञा का प्रसारण मेलपाटी में हो किया गया था। मेलपाटी ( मेलपाडी ) उत्तरी अरकाट जिले में स्थित है" जब कि मान्यखेट भूतपूर्व निजाम रियासत में वर्तमान मालखेड का हो प्राचीन नाम है ।
अतः यह कथन उपयुक्त नहीं कि मान्यखेट का ही प्राचीन नाम मेलपाटी होगा सोमदेव राष्ट्रकूट सम्राट् कृष्णर राजदेव के समकालीन थे। उन्होंने यशस्तिलक को
१. K. K. Handirgule - Yasastilaka and Indian Culture, Ch. I, P. 3. २. लैपुलानपत्र -
स्वस्तस्य कालवर्ष देवीपुथिवीवल्लभमहाराजाधिराजपरमेश्वर परम भट्टार कभी मदमोघवर्ष देशपादानृध्यात - मानविजयश्री कृष्ण राजदेवरादयोपजीविनर |
नाथुराम प्रेमी नोतित्राभ्यामृत की भूमिका, पृष्ठ १६ ।
४. मड़ी।
k. Epigraphia Indica, Val, 1V, Parts VI and VII, P, 28!,
६. डॉ० रमाशंकर त्रिपाठी, प्राचीन भारत का इतिहास ६० ३०५ ॥
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क्यामृत में राजनीति