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में कहीं भी इस प्रकार का वर्णन उपलम्प नहीं होता। इस के अतिरिक्त यशस्तिलक का रचना काल शकसंवत् ८८१ है और वादिराज के अन्य पार्श्वनाथ चरित का रचना काल शकसंवत् १४७ है। इस प्रकार दोनों ग्रन्थों के रचना काल में ६६ वर्ष का अन्तर है । ऐसी स्थिति में उन का गुरु-शिष्य का सम्बन्ध किसी भी प्रकार से सम्भव नहीं माना जा सकसा । वाविराज ने पार्श्वनाथचरित में अपने गुरु का नाम मतिसागर लिखा है। मतिसागर द्रविडसंघ के आचार्य थे । वादीसिंह ने भी अपने ग्रन्थ गद्यचिन्तामणि में अपने गुरु का नाम पुष्पर्षण लिखा है और पुष्पर्षण को अकलमदेव का गुरुभाई माना जाता है। अतः उन का समय सोमदेव से बहत पूर्व बैठता है। इस प्रकार वादिराज एवं वादीभसिंह को सोमदेव का शिष्य स्वीकार नहीं किया जा सकता ।
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नोसिवाक्यामृत का रचनाकाल
नीतिवाक्यामृत की गद्यप्रशस्ति से इस बात का कोई आभास नहीं मिलता कि इस ग्रन्ध की रचना कब और कहां हई। किन्तु यशस्तिलक को पचप्रशस्ति में इस महाकाव्य की रचना के स्थान एवं समय का स्पष्ट वर्णन मिलता है, जो कि नीतिवाक्यामृत के रचनाकाल एवं स्थान का ज्ञान कराने में महोपयोगी है। प्रशस्तिलक की प्रशस्ति का आशय इस प्रकार है-'शकसंवत् ८८१ (वि० संबत् १०१६ ) में पाट्य, सिंहल, चोल तथा चर आदि देशों के रामानों पर विजय प्राप्त करने वाले महाराजाबिमाज श्रीकुरु माग में मामाज्या संभाल रहे थे तब उन के चरणकमलोपजीवी सामन्त अदिग, जो कि चालुक्य नरेश अहिकेशरी के प्रथम पुत्र थे, गंगाघारा में राज्य कर रहे थे, तब यह यशस्तिलक चम्पमहाकाव्य सिद्धार्थ नामक संवत्सर में चैत्रमास की मदनत्रयोदशी के दिन सम्पूर्ण हमा। सोमदेव के इस कथन की पुष्टि करहद्ध ताम्रपत्र से भी होती है, जिसे महान राष्ट्रकुट सम्राट् कृष्ण तृतीय ने ९ मार्च, सन् ९५९ ६० को प्रसारित किया था ।" यह आशा-पत्र यशस्तिलक की समाप्ति से कुछ समाह पूर्व प्रसारित किया गया था। इस ताम्र-पत्र में एक शैव सन्यासी को प्राम-दान का उल्लेख है। उस समय राष्ट्रकूट सम्राट् कृष्ण तृतीय का निवास मेलपाटी में हो था और वहीं पर उन्होंने ताम्र-पत्र में उल्लिखित ग्रामदान की आज्ञा प्रसारित की थी।
१. ५० नाथूराम प्रेमो-नीतिवाक्यामृत की भूमिका, पृ०६। २. वही। ६. यश, बा .भा०२. ४१ । "शकनृपकालातीतपिरसरशते-जनस्वकाशीत्यधिकेषु गतेषु अतः ( ८८१) सिक्षार्थ मल्सरा'तर्गत प्रमाममदनत्रयोदश्यां पाइप-सिंहल-चोल-चेरमप्रभृतीन्महीपतीन्प्रसाध्य भेलपाटी प्रबंधमान राज्यभावे वीकृष्णाराजदेवे सति तत्पादपमोपजीविनः समधिगत रकमहाशब्दमहासामन्त धपतेचालुमाकुलजन्मनः सामन्तचुमानगे' श्रीमदरकेसारगः, प्रथमपुत्रस्य श्रीमद्प्प गराजरयन प्रवर्णमानवमुधारामा हाभागमा विनिर्मापितमिदं काञ्चमिति।" 8. Epigraphia larica, l'ol. IV, Parts V1 & VU, T, 278.
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सोमदेवर्षि और उन का भौतिवाक्यामृत