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स्थिर चित्त से सबने आनन्द उठाया, जिसकी अनुमोदना करते हैं । समस्त श्रोताओं को लाख-लाख धन्यवाद ! हम चाहे जितने एकत्रित हो, निमन्त्रण भी हों, आप आये भी हों, परन्तु यदि श्रवण करने में आपका चित्त एकाग्र न बने तो आप दो-दो घंटे बैठ ही नहीं सकते । इसीलिए आप सबको लाख-लाख धन्यवाद !
समस्त महात्माओं ने जिस सुन्दर शैली में मैत्री की बातें की, उन सबके भाव को सम्मिलित करता यह श्लोक आप सब साथ बोलें -
'शिवमस्तु सर्व जगतः'
'मैं जैन हूं' अमेरिका में निवास करने वाले उन भाई को बचपन में जैन कुल में माता-पिता के संस्कार मिले। अमेरिका में अध्ययन हेतु गये, कमाये ।
एक बार ऐसा हुआ कि उनकी कम्पनी के मालिक ने कहा कि आपका पद और वेतन बढाया गया है। भाई प्रसन्न हुए फिर पूछा के मुझे कार्य क्या करना
_ 'चरबी से बननेवाली दवाइयों की जांच एवं निरीक्षण करें।'
इस भाई ने तुरन्त उत्तर दिया कि 'मैं यह पद नहीं ले सकता। मैं जैन हूं ।'
अन्यत्र नौकरी पर जाना पसन्द किया । घर जाकर पत्नी को बात बताई । पत्नी ने कहा - हम सादगी से रहेंगे । चिन्ता न करें। आपने बहुत अच्छा किया। __जैन कुल मिलने का निमित्त भी पाप से बचाता
- सुनंदाबेन वोरा
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कहे कलापूर्णसूरि - ३00000000000000000000 ४३)