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तीर्थमाल, शंखेश्वर, वि.सं. २०३८
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१७-९-२०००, रविवार अश्विन कृष्णा - ४ : पन्ना रूपा धर्मशाला
आगम-परिचय-वाचना भगवती अंग
पूज्य आचार्यश्री विजयकलापूर्णसूरिजी :
सबकी भलाई के लिए भगवान ने तीर्थ की स्थापना की । भगवान पुष्करावर्त मेघ की तरह बरसे हैं । आज भी उसका प्रभाव अनुभव किया जा सकता है । भगवान का है, उस प्रकार भगवान की ३५ गुणों से युक्त वाणी का भी अतिशय है । पुष्करावर्त मेघ के बादमें २१ बार धरती पर उपज होती रहती है, उस प्रकार भगवान की वाणी से २१ हजार वर्षों तक शासन चलता रहेगा से यह वाणी का प्रवाह चलता रहेगा ।
परम्परा
* प्रभु के अनुग्रह का यह ज्वलंत उदाहरण है । उसके बिना इस भूमि पर ऐसे वातावरण का सृजन नहीं होता, सामूहिक अनुष्ठान नहीं हो सकता ।
उत्तम भावना जगे तदनुसार विकास होता है । प्रत्येक संघ, समुदाय में ऐसा वातावरण बन जाये तो विकास कहां दूर है ?
३५० Wwwwwwwwwwwwwwwww कहे कलापूर्णसूरि- ३