Book Title: Kahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Author(s): Muktichandravijay, Munichandravijay
Publisher: Vanki Jain Tirth

View full book text
Previous | Next

Page 399
________________ हटाने के लिए कर्मों की फौज, करने के लिए परमात्मा की खोज, लेने के लिए मुक्ति की मौज, यह पुस्तक है सुख का हौज । साध्वी भव्यदर्शिताश्री H यह पुस्तक प्रत्येक व्यक्ति के लिए अत्यन्त ही उपयोगी है । साध्वी चारुविनीताश्री 28 यह पुस्तक पढ़ने पर ऐसा प्रतीत हुआ, मानो प्रत्येक शब्द भगवान के श्रीमुख में से निकला हो । साध्वी अभ्युदयाश्री H इस पुस्तक को पढ़ने से हमारे भीतर समस्त जीवों के प्रति मैत्री, परोपकार एवं करुणा प्रकट हो, गुरु एवं सहवर्तियों के प्रति अत्यन्त आदर-भाव उत्पन्न हो वैसे मनोरथ हुए हैं । साध्वी चित्तदर्शनाश्री H 8 जहां लघुता होगी वहां भक्ति प्रकट होगी, जहां भक्ति होगी वहां मुक्ति प्रकट होगी, पुस्तक का यह वाक्य मुझे अत्यन्त ही पसन्द आया । साध्वी वीरदर्शनाश्री - पूज्य श्री की वाचना सोये हुए आतमराम को झकझोर रही है । सुषुप्त चेतना तनिक जागृत होने के लिए प्रयत्नशील है । 1 साध्वी हंसमैत्री श्री ( कहे कलापूर्णसूरि ३ - अनादि काल से प्रभु का जो वियोग है, उस प्रभु का संयोग कर दे ऐसे योगों के आराधन करने की इच्छा यह पुस्तक पढने से हुई । साध्वी हंसलक्षिताश्री 8 ० ३६७

Loading...

Page Navigation
1 ... 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412