Book Title: Kahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Author(s): Muktichandravijay, Munichandravijay
Publisher: Vanki Jain Tirth

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Page 403
________________ इस पुस्तक ने हमें समझाया कि भक्ति के अलावा मुक्ति का दूसरा कोई मार्ग नहीं है । ___Round is ring which has no end, but 'Bhakti' is thing which has direct connection with Paramatma. - सा. जिनभक्तिश्री ज्यों ज्यों पुस्तक पढती गई त्यों त्यों कभी न सुने हुए, न जाने हुए नये-नये पदार्थ जानने मिलते गये । - सा. स्मितवदनाश्री बिन्दु का संचय अर्थात् महासागर ! किरणों का समूह अर्थात् दिवाकर ! गुलाबों का मिलन अर्थात् गुलझार ! 'कहे कलापूर्णसूरि' पुस्तक अर्थात् ज्ञान का रत्नाकर ! - सा. जिनरसाश्री इन पुस्तकों को जितना अधिक पढते है, उतनी अधिक - अधिक पढने की इच्छा होती रहती है । - सा. विनयनिधिश्री इस पुस्तक का मेरा प्रिय वाक्य : 'श्रुतज्ञान मात्र पढ-पढ कर नहीं, परंतु उस मुताबिक जीवन जी कर टिकाना है ।' - सा. जीतप्रज्ञाश्री सूर्य की किरण पकड़ी नहीं जा सकती, उस प्रकार इस पुस्तक का वर्णन नहीं हो सकता । - सा. चेल्लणाश्री संयम-जीवन की प्रगति के लिए उत्सुकता बढी है । - सा. चारुस्तुतिश्री (कहे कलापूर्णसूरि - ३00wooooooooooooo0000 ३७१)

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