Book Title: Kahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Author(s): Muktichandravijay, Munichandravijay
Publisher: Vanki Jain Tirth

View full book text
Previous | Next

Page 404
________________ पुस्तक पढने से दोष कम हो, गुण प्रगट हो, ऐसे मनोरथ हुए हैं। - सा. दिव्यरत्नाश्री । देव-गुरु की आज्ञानुसार जीवन व्यतीत करुं - ऐसी स्फुरणा पुस्तक पढने से हुई । - सा. मैत्रीरत्नाश्री "भक्ति ही मुक्ति की दूती है" यों इस पुस्तक से जानने पर भक्ति की ओर मन झुका । . - सा. मैत्रीधर्माश्री 'पूज्यश्री साक्षात् बोल रहे हो' ऐसा इस पुस्तक को पढने से प्रतीत होता है । - स्व. सा. मैत्रीकल्पाश्री पुस्तक पढने से प्रभु को देखते प्रसन्नता बढ़ रही है । - सा. विरागरसाश्री वर्षीदान से वंचित रहे हुए उस ब्राह्मण को प्रभु श्री महावीर ने लास्ट में देवदूष्य देकर भी संतोष दिया, उस प्रकार वांकी की वाचनाओं से वंचित रहे हुए हमें भी इस पुस्तक ने संतोष दिया । - सा. चारुप्रसन्नाश्री इस पुस्तक में पूज्यश्री ने साधु जीवन का सब ही परोस दिया है। - सा. दिव्यप्रतिमाश्री पुस्तक में दर्शित पूज्यश्री की बातें पाठक के हृदय को गद्गद् बना देती है। ___- सा. वात्सल्यनिधिश्री (३७२ 66 ooooooooooooms कहे कलापूर्णसूरि - ३)

Loading...

Page Navigation
1 ... 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412