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आत्मानंद के बीज का आधान यह पुस्तक पढते-पढते हुआ । इससे ज्यादा दूसरा क्या लाभ हो सकता है ?
- सा. सम्यग्दर्शनाश्री
यह पुस्तक, पढनेवाले भावुक को भक्ति के दिव्यलोक में ले जाती है।
- सा. प्रियधर्माश्री
पुस्तक पढने के बाद प्रभु-दर्शन करते प्रसन्नता बहुत ही बढ़ रही है।
- सा. विरागयशाश्री
इस किताब को पढ़ते-पढते ही हृदय में प्रभु-भक्ति की धारा बहती है ।
- सा. संजयशीलाश्री, वापी
'कहे' और 'कां' आदि सभी पुस्तक पढे । बहुत ही सुंदर संयम-जीवन को पुष्टि देनेवाले है। महापुरुषों के जीवन का मानो प्रत्यक्ष दर्शन हो रहा हो - ऐसा एहसास हो रहा है।
- महासती सुशीलाबाइ, बोटाद संप्रदाय, धोळा
आपके दोनों पुस्तक देखे । बहुत ही आनंद हुआ । वीरवाणी . का कितना अच्छा विनियोग आप कर रहे हैं ? भूरि-भूरि अनुमोदना ।
- महासती पद्माबाइ, राजकोट
मैं इतनी दूर हूं, फिर भी पुस्तक पढ़ते समय ऐसा महसूस होता है : मैं पालीताना में ही बैठकर पूज्यश्री के वचनामृत सुन रही हूं।
- कु. तारकेश्वरी पी. भंसाली, हुबली (कर्णाटक)
कहे कलापूर्णसूरि - ३ooooooooooooooooooom ३७३)