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पुस्तक पढने पर लगाः प्रभु सतत प्रेम की वृष्टि कर रहे है, पर हम ही नहीं झेल रहे हैं ।
- सा. अक्षयप्रज्ञाश्री
समुद्र से तरंग की तरह मैं भी प्रभु से भिन्न नहीं हूं - यह पुस्तक द्वारा जानने पर मैं आनंद से भर गई हूं।
- सा. इन्द्रवदनाश्री
पुस्तक में हर जगह पूज्यश्री की करुणा से दर्शन होते है ।
- सा. शीतलदर्शनाश्री
सम्यग् दिशा और सम्यग् मार्ग की ओर ले जानेवाली पुस्तक अर्थात् : 'कहे कलापूर्णसूरि'
_ - सा. दीप्तिदर्शनाश्री
पूज्यश्री का पुस्तक पढने पर हर गच्छ के पू. साधु-साध्वीजीओं को पूज्यश्री पर अहोभाग जगता है ।
- सा. यशोधर्माश्री
इस पुस्तक ने प्रभु का स्वरूप समझाया ।
___- सा. अनंतज्योतिश्री
बार बार पढने पर भी मन तृप्त नहीं होता ।
- सा. जिनरक्षिताश्री
पुस्तक कभी बोलती नहीं है, पर यह पुस्तक बोलती हुइ महसुस हुई । मानो पूज्यश्री के प्रभाव से जड़ में भी वाणी प्रगट हुई ।
- सा. दृढप्रतिज्ञाश्री
इस पुस्तक में साधना के लिए क्या नहीं है ? यही प्रश्न है।
- सा. सम्यक्त्वरत्नाश्री
(३७०0000000000000Booooon कहे कलापूर्णसूरि - ३)