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'कहे कलापूर्णसूरि' पुस्तक में लोकोत्तर बातें है । आत्मा को परमात्मा बनाने की वाणी-गंगा हर पेज पर छलकती है । सा. चन्द्रज्योत्स्नाश्री
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अनेक ग्रंथों का सार इस पुस्तक में रहा हुआ है ।
पुस्तक पढने से अब हम प्रभु के करते है, पहले हम सिर्फ पांव घंटा ही भक्ति में भी उल्लास बढा है ।
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पास भक्ति
भ
पुस्तक पढने के बाद जाप, प्रभु-भक्ति बढे मैं प्रयत्नशील रहूंगी ।
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पुस्तक पढने पर प्रतिदिन आधा घंटा पढना (संकल्प) की है ।
प्रतीत हुआ ।
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आधा घंटा भक्ति करते थे । गुरु
सा. प्रशमनिधिश्री
इसके लिए
सा. धनंजयाश्री
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सा. मनोजयाश्री
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इस पुस्तक में ऐसा अखूट ज्ञान का खजाना है कि जिसका वर्णन नहीं हो सकता ।
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सा. अनंतकिरणाश्री
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पुस्तक से भक्ति में रस जगा है । मंदिर में से निकलने की इच्छा नहीं होती ।
ऐसी धारणा
सा. भुवनश्री
पुन: पुन: इस पुस्तक का स्वाध्याय करने जैसा है
सा. जितपद्माश्री
ऐसा
सा. अक्षयचन्द्राश्री
१७ कहे कलापूर्णसूरि