SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 400
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 'कहे कलापूर्णसूरि' पुस्तक में लोकोत्तर बातें है । आत्मा को परमात्मा बनाने की वाणी-गंगा हर पेज पर छलकती है । सा. चन्द्रज्योत्स्नाश्री 28 अनेक ग्रंथों का सार इस पुस्तक में रहा हुआ है । पुस्तक पढने से अब हम प्रभु के करते है, पहले हम सिर्फ पांव घंटा ही भक्ति में भी उल्लास बढा है । - पास भक्ति भ पुस्तक पढने के बाद जाप, प्रभु-भक्ति बढे मैं प्रयत्नशील रहूंगी । - पुस्तक पढने पर प्रतिदिन आधा घंटा पढना (संकल्प) की है । प्रतीत हुआ । ३६८० आधा घंटा भक्ति करते थे । गुरु सा. प्रशमनिधिश्री इसके लिए सा. धनंजयाश्री H सा. मनोजयाश्री - इस पुस्तक में ऐसा अखूट ज्ञान का खजाना है कि जिसका वर्णन नहीं हो सकता । - - सा. अनंतकिरणाश्री 8 पुस्तक से भक्ति में रस जगा है । मंदिर में से निकलने की इच्छा नहीं होती । ऐसी धारणा सा. भुवनश्री पुन: पुन: इस पुस्तक का स्वाध्याय करने जैसा है सा. जितपद्माश्री ऐसा सा. अक्षयचन्द्राश्री १७ कहे कलापूर्णसूरि
SR No.032619
Book TitleKahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktichandravijay, Munichandravijay
PublisherVanki Jain Tirth
Publication Year
Total Pages412
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy