Book Title: Kahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Author(s): Muktichandravijay, Munichandravijay
Publisher: Vanki Jain Tirth

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Page 401
________________ पूज्यश्री की वाचना का उत्कृष्ट वचन आज भी कान में गूंज रहा है : 'प्रभु ने जिन्हें प्रिय माने उन्हें प्रिय मानकर जीना, यही मुनि का लक्ष्य होना चाहिए ।' - सा. हंसदर्शिताश्री पुस्तक के प्रत्येक पृष्ठ पर रही हुई प्रभु-प्रेम की प्यालियां पी कर हम भी कृतार्थ हुए । - सा. जयप्रज्ञाश्री पूज्यश्री की वाणीरूप पानी को पुस्तक के बांध में संगृहीत करने का भगीरथ काम करनेवाले पू बंधुयुगल अभिनंदन के पात्र है। - सा. जयधर्माश्री इस पुस्तक से मुझे हर भव का पाथेय मिला है। मेरे फलोदी गांव के रत्न महान योगी बन सके तो मैं भी इस मार्ग पर क्यों न चल सकू ? - ऐसा बार-बार विचार आ रहा है । ___- सा. जिनकृपाश्री यह पुस्तक पढने पर सारा दिन मन के अध्यवसाय शुभ रहते हैं। - सा. जिज्ञेशाश्री साक्षात् तीर्थंकर प्रभु की वाणी की झांखी हुई । - सा. शीलगुणाश्री पूज्यश्री का पुस्तक अमूल्य है। दोनों पुस्तक आधे पढ़ लिये हैं । पढते आनंद आता है और लगता है कि हममें कुछ भी नहीं है । तथा प्रभु के प्रति भक्ति-भाव बढ रहा है । - सा. अभ्युदयाश्री-तत्त्वज्ञताश्री अमदावाद (कहे कलापूर्णसूरि - ३0mmmwwwwwwwwwwwwww ३६९)

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