Book Title: Kahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Author(s): Muktichandravijay, Munichandravijay
Publisher: Vanki Jain Tirth

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Page 397
________________ यह पुस्तक विशाल, गम्भीर एवं अगाध है । विषयों की विशालता (नमस्कार मंत्र, गुरुभक्ति, प्रभु-भक्ति, अध्यात्म, विनय, ज्ञान, स्वाध्याय, श्रद्धा आदि विषय) है । अर्थ (प्रभु-कृपा, गुरुकृपा, विषयों की विरक्ति, विनियोग आदि) की गम्भीरता और अध्यात्म-चिन्तन रूप गहराई - यह सब देख-पढ़ कर मैं मात्र विस्मय का ही अनुभव करती हूं । - साध्वी हितदर्शनाश्री परम तारणहार परमात्मा की परम प्रीत-पराग का पान करते हुए पूज्यश्री के मुखारविन्द से प्रकाशित इस वाणी का दोहन करते हुए मेरा हृदय भावुक बन गया है । - साध्वी चारुनयनाश्री यह पुस्तक पढ़ कर सचमुच लगा कि ये गुण (भक्ति आदि) जीवन में विकसित करने योग्य हैं । - साध्वी मुक्तिरेखाश्री __मानव-जीवन अमृत है, जिसकी झलक सचमुच यह पुस्तक पढ़ने पर हुई । ___- साध्वी सुशीलगुणाश्री पूज्य गुरुदेवश्री के मुख-कमल से प्रसारित अमृततुल्य जिनवाणी रूप वाचना की झलक मुझे तो अत्यन्त ही पसन्द आई है । - साध्वी हर्षदर्शिताश्री पुस्तक पढ़ कर मन-मयूर नाच उठा ।। - साध्वी विश्वकीर्तिश्री इस पुस्तक में से जानने को तो इतना अधिक मिला है कि जिनका तो मैं शब्दों में वर्णन नहीं कर सकती । - साध्वी अनन्तकीर्तिश्री (कहे कलापूर्णसूरि - ३000moooooooooooo00 ३६५)

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