Book Title: Kahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Author(s): Muktichandravijay, Munichandravijay
Publisher: Vanki Jain Tirth

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Page 388
________________ हम सब खेती करते हैं, परन्तु जमीन में उपज हो वह भगवान की पुष्करावर्त रूप वाणी का प्रभाव है । हमारे बोलने के कारण से होता है, ऐसा हमारा भ्रम है । जो इससे मिट जाता है । 'नमो सुअस्स' श्रुतज्ञान को नमस्कार, प्रणाम । तीर्थ के तीन प्रकार हैं, जिनमें द्वादशांगी भी है । पू. पंन्यास भद्रंकरविजयजी महाराज ने बहुत सा अनेकों को दिया है । श्रुत अर्थात् सुना हुआ, सिर्फ पढ़ा हुआ नहीं । गुरु के पास सुना हुआ ही भीतर का प्रकट कराता है । वेदों को 'श्रुति' कहा गया है । सुनने से ही आध्यात्मिक जन्म होता है, सुनने का ही महत्त्व है । बालक भी सुन कर ही भाषा सीखता हैं । सुच्चा जाणइ । * नमो बंभीए लिवीए । भगवान बोले उसकी जो आकृति खड़ी हुई वह ब्राह्मी । भैरवी राग गाओ तो भैरवी, वागेश्वरी से सरस्वती की मूर्ति रेत में खींच जाती है, ऐसा तजज्ञों का कथन है । मूल शब्द ब्रह्म है । ब्रह्म अर्थात् परमात्मा । उनके द्वारा बोला हुआ वह ब्राह्मी । ब्राह्मी भगवान का अक्षर-देह है, जो अविनाशी है । श्रुत-बीज को नमस्कार के बाद ब्राह्मी लिपि को भी नमस्कार यहां हुआ है । भगवती की इतनी महिमा क्यों है ? इसमें चतुर्विध संघ के है । मुख्य गौतम स्वामी हैं, हैं । सबों को प्रश्न करने का स्थान मिला और जयन्ती श्राविका आदि दूसरे भी जयन्ती राजा शतानिक की सगी बहन थी । भक्ति में सुलसा आगे थी, जबकि जिज्ञासा में जयन्ती आगे थी । उस पर अभयदेवसूरि ने 'जयन्ती चर्चा' नामक ग्रन्थ लिखा है, जिसे साध्वीएं भी पढ़ सकती हैं । अणु विज्ञान के सिद्धान्त भी भगवती में से खोजे गये हैं, जो प्रकाशित भी हुए हैं । ३५६ WWWWW १८७८ कहे कलापूर्णसूरि - ३

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