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आराधना के तीन सोपान हैं - शरणागति, दुष्कृतगर्दी और सुकृत-अनुमोदना ।
छः आवश्यकों में ये तीनों आराधनाऐं प्रतीत होंगी ।
* पुनिया श्रावक-जीवन में था तो भी इतना आत्मानन्द में मग्न रहता था कि भगवान महावीर स्वामी ने उसकी प्रशंसा
की थी
हमें ऐसे आनन्द की कोई झलक है क्या ? - हमें तो यावज्जीवन सामायिक है ।
चाबुक नहीं मार रहा हूं, केवल पूछता हूं ।
ये लोग तपस्वियों की भक्ति के लिए अनेक प्रकार की खाद्य सामग्रियां बनाते हैं, उस प्रकार भगवान ने आत्मा के आस्वादन हेतु अनेक प्रकार की साधना की सामग्रियां बनाई हैं, परन्तु हम इन्हें खायें तो स्वाद आयेगा न ?
* अपने छःओं आवश्यक पांचों आचारों की शुद्धि करने वाले हैं ।
* लोगस्स में नाम, अरिहंत चेइआणं में स्थापना, नमुत्थुणं में द्रव्य और भाव भगवान हैं ।
पुक्खरवरदी में बोलते भगवान (आगम) हैं ।
पुक्खरवरदी में आगमों को भगवान कहा है । (सुअस्स भगवओ) क्योंकि श्रुत एवं भगवान भिन्न नहीं हैं ।
'जिनवर जिनागम एक रूपे, सेवंता न पड़ो भव-कूपे ।'
- पं. वीरविजयजी शास्त्रे पुरस्कृते तस्माद् वीतरागः पुरस्कृतः । पुरस्कृते पुनस्तस्मिन्, नियमात् सर्वसिद्धयः ॥
- ज्ञानसार - उपा. यशोविजयजी किसी कार्य में सफलता प्राप्त हो तो कदापि अभिमान न करें कि मेरे कारण से सफलता प्राप्त हुई है। भगवान को ही आप आगे करें । कार्य में सफलता प्राप्त कराने वाले हम कौन हैं ? हमारा क्या सामर्थ्य है ? भगवान ही हमारी सफलता के सूत्रधार हैं । इसीलिए योगोद्वहन आदि की क्रिया में (कहे कलापूर्णसूरि - ३0wwwwwwwwwwwwwwwws १६९)