Book Title: Kahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Author(s): Muktichandravijay, Munichandravijay
Publisher: Vanki Jain Tirth
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कंचन गुरुजीनी वाणी सुणतां हैयुं एमनुं डोले,
आ संसारनी झूठी माया, ने ममताने तोडे; त्रीस वरसनी आयुमां संयमथी नातो जोड़े, पत्नी-पुत्रो-ससरा साथे, आ संसारने छोड़े, आप बन्या अणगार...
कलापूर्णसूरिने... पुरुषादाणी पार्श्वप्रभुनी भक्तिथी रंगाया, नवकार मंत्रने जपतां जपतां आतम सिद्धि पाया; कर्मठ संत अध्यात्मयोगी शासनमां पंकाया, कच्छ वागड़ देशोद्धारक छो सहुना लाडकवाया, छो गुणना भण्डार...
कलापूर्णसूरिने... कलाप्रभसूरिजी पासे ज्ञान तणो भंडार, पंन्यास कल्पतरुविजयजी शान्तिनो अवतार; पंन्यास कीर्तिविजयजीना सुणजो सुविचार, गणिश्री मुक्ति-पूर्ण-मुनिना माथे छे बहु भार, सहुए मिलनसार...
कलापूर्णसूरिने... जिन-शासन धुरंधरो जे आपनी माने वात, क्रोध-कषाय-क्लेश ने साचे आपे कीधा छे महात; आपना चरणे सह कोई आवे, नहीं कोई नात के जात, तमे अमारा मात पिता छो तमे अमारा तात, कीधा छे उपकार...
कलापूर्णसूरिने... पालीताणामां आप पधार्या जाग्या भाग्य अमारा; जीवन नैया सौंपी तमने आप छो तारणहारा; । कठपुतलीना नाटक जेवा आ जीवन छे अमारा; आ जीवनमां मोह ने मायाना दीसे अंधारा, नयने अश्रुधार...
कलापूर्णसरिने... साधु-साध्वी चारसो साएठ ने सोलसो आराधक, कलापूर्णसूरिजी मलिया, एक साचा उद्धारक; आ दुनियामां सिद्धगिरि जे भव्य जीवोना तारक, गुरुजी अमने संयम लेवा आप बनावो लायक, सपनुं करो साकार...
कलापूर्णसूरिने... (३१४ 000000000000000000000 कहे कलापूर्णसूरि - ३)

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