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SNORIES
पदवी प्रसंग, वि.सं. २०५२, माघ शु. १३, मद्रास
१३-९-२०००, बुधवार भादौं शुक्ला-१५ : सात चौबीसी धर्मशाला
* तीर्थ की स्थापना से प्रारम्भ हुआ मुक्ति-मार्ग इक्कीस हजार वर्षों तक रहेगा । तब तक भगवान का अनुग्रह रहेगा । जो कोई भी भगवान का स्मरण करेगा, उसमें भगवान की शक्ति जागृत होगी ही । भगवान के अनुग्रह को समझने के लिए 'ललित विस्तरा' अद्भुत ग्रन्थ है।
कलियुग में भगवान को किस प्रकार समझें ? कलियुग अर्थात् घोर अन्धकार । यहां कहीं भी भगवान का प्रकाश देखने को नहीं मिलेगा । ऐसे घोर अन्धकार में 'ललित विस्तरा' टिमटिमाता दीपक
* यदि कनेक्शन कटा हुआ होगा तो चाहे जितनी स्विच दबाओ, प्रकाश नहीं होगा । भगवान के साथ 'कनेक्शन' टूटा हुआ हो, तो चाहे जितने अनुष्ठान करो, परम का अनुभव नहीं होगा । भगवान के साथ जुड़ना ही धर्म-क्रिया का प्राण है। इस के बिना सभी धर्म-क्रियाएं निर्जीव हैं, निष्प्राण हैं, निर्बीज हैं (बीज रहित हैं)।
* पुरिसुत्तमाणं । कितनेक रत्न अनायास ही दूसरों से कहे कलापूर्णसूरि - ३ as as eas Cas Cass 6 6 6 6 6 CDS & Ct Sto a rai lai ३२९)