Book Title: Kahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Author(s): Muktichandravijay, Munichandravijay
Publisher: Vanki Jain Tirth

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Page 374
________________ सत्त्व गुण वाला ही परिषह आदि सहन कर सकता है, धैर्य रख सकता है। हाथी चलता है, कुत्ते भौंकते हैं । तब हाथी क्या करता है ? 'हाथी चलत बाजार, कुत्ता भसत हजार ।' कुत्ते जैसे परिषहों से हाथी जैसा सत्त्ववान आत्मा थोड़ा चलायमान होता है ? भगवान में यह सत्त्वगुण कैसा उत्कृष्ट है ? छः छः महिनों तक संगम पीछे पड़ा था, फिर भी भगवान सत्त्व से एक इंच भी विचलित नहीं हुए । एक रात्रि में बाईस-बाईस उपसर्ग हुए, फिर भी भगवान के चेहरे पर तनिक भी भय की रेखा नहीं दिखाई दी । यदि भय होता तो साधना कैसे हो पाती ? भय अर्थात् चित्त की चंचलता । साधक को यह कैसे होता ? __ भगवान में तो भय होता ही नहीं, भगवान की शरण लेने वाले में भी भय नहीं होता । इसीलिए भगवान को अभयंकर एवं अभयदाता कहा गया है । 'अभयकरे सरणं पवज्जहा ।' ___- अजित शान्ति 'हे पुरुषो ! यदि आप अपने कष्ट मिटाना चाहते हों, सुख का कारण खोजते हो तो अभयंकर शान्ति-अजित का शरण स्वीकार करें,' - अजित शान्ति में नंदिषेण मुनि ने यह घोषणा की है। अभय नहीं मिला हो तो समझें कि अभी तक हमने भगवान का शरण स्वीकार नहीं किया है । भगवान तो अभय होते ही है, भगवान के भक्त भी अभय होते हैं । आनन्द, कामदेव जैसे श्रावक भी भयंकर देवकृत उपसर्गों से विचलित नहीं हुए, भयभीत नहीं हुए । न चिन्तापीन्द्रियवर्गे । __ सत्त्वशील सहज ही इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर सकता है। भगवान तो सात्त्विकों में शिरोमणि है । 'हे प्रभु ! आपने मन को वश में किया, पर बलात्कार से नहीं । इन्द्रियों को वश में की परन्तु बलपूर्वक नहीं, मात्र शिथिलता से आपने सबको जीत लिये हैं ।' (३४२ 80www00000 EDOS कहे कलापूर्णसूरि - ३)

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