Book Title: Kahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Author(s): Muktichandravijay, Munichandravijay
Publisher: Vanki Jain Tirth

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Page 376
________________ अज्ञानी मनुष्य धर्मात्मा लोगों को होते कष्टों को देख कर कहते हैं कि धर्मी के घर डाका पड़ा, परन्तु उन्हें कर्मो के हिसाब का पता नहीं है । 'उत्तराध्ययन' में एक सुन्दर दृष्टान्त आता है - गाय को सूखा और बकरे को उत्तम हरा घास दिया जाता देख कर निराश हुए बछड़े को गाय ने कहा, भोले ! तुझे पता नहीं है कि यह बकरा कसाई के पास जायेगा तब सब पता लगेगा । कसाई के पास जाते, रोते, कटते बकरे को देखकर बछड़ा सब समझ गया कि इस समय मिलता सूखा घास भविष्य के लिए उत्तम है, जब कि इस समय मिलते माल-मलीदे भविष्य के लिए भयंकर है । जे सारक्खाया ते तयक्खाया जे तयक्खाया ते सारक्खाया राग-रंग, मौज-शौक करने वाले पापी मनुष्यों को देख कर कदापि विचलित न बनें । आज के राग-रंग भविष्य की आग हैं । आज के विराग भावी के बाग हैं । * कमल का स्वभाव है - देखते ही सबको आनन्द हो । भगवान को देखते ही सबको आनन्द आता है। उनकी मुद्रा, उनकी वाणी, उनका अस्तित्व सबको आनन्द की प्रभावना करने के लिए ही उत्पन्न हुआ होता है । इसीलिए भगवान 'पुरिसवरपुंडरीआणं' है । निरपेक्ष मुनि मुनिराज निर्भय क्यों होते हैं ? शुद्ध चारित्र के सम्मुख बने मुनि जगत् के ज्ञेय पदार्थ में ज्ञान को नहीं जोड़ते । मात्र ज्ञेय पदार्थ को जानते हैं । तथा उन्हें कुछ भी छिपाना नहीं है, किसी के साथ कुछ भी लेने-देने के विकल्प नहीं हैं। ऐसे मुनिराज को जहां लोक-अपेक्षा या आकांक्षा नहीं है, वहां भय कहां से होगा ? (३४४ woman was saas sass कहे कलापूर्णसूरि - ३)

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