Book Title: Kahe Kalapurnasuri Part 03 Hindi
Author(s): Muktichandravijay, Munichandravijay
Publisher: Vanki Jain Tirth

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Page 362
________________ चमकदार होते हैं । उस प्रकार तीर्थंकरों की आत्माएं भी सहज ही चमकदार होती हैं । इसीलिए वे पुरुषोत्तम कहलाते हैं । कांच पर चाहे जतने पोलिश करो, परन्तु हीरे जैसी चमक उसमें नहीं आती; अडियल घोड़े को चाहे जितना प्रशिक्षण दो, परन्तु जातिमान घोड़े जैसा वह नहीं बन सकेगा । सामान्य जीवों को चाहे जितने संस्कार दो, वे भगवान के समान नहीं बन सकते । __ एक मत ऐसा है कि जो सबको समान मानता है । इस पद से उस मत का खण्डन हुआ । * तामिलनाडू में गिरी हुई स्थिति वाले एक धनाढ्य व्यक्ति ने अपनी हीरों वाली एक अंगूठी एक फेरी वाले को पांच हजार रूपयों में बेची । फेरी वाले ने एक व्यापारी को वह अंगूठी पचास हजार रूपयों में बेची । व्यापारी ने बड़े व्यापारी को वह एक लाख रूपये में बेची और अन्त में वह अंगूठी परदेश में पांच लाख रूपयों में बिकी । यह घटी हुई घटना है । हीरे की पहचान सब नहीं कर सकते । भगवान की पहचान सब नहीं कर सकते । हम फेरी वाले जैसे नहीं हैं न ? प्रज्ञावान् व्यक्ति के अतिरिक्त भगवान एवं भगवान के दर्शन को कौन समझ सकता है ? भगवान और भगवान की महिमा चाहे जिसे बताने मत लग जाना । चाहे जिसके साथ चर्चा करने मत लगना । कर्म के अमुक विगम के बिना यह तत्त्व समझ में नहीं आता । भगवान की कृपा वैसे ही समझ में नहीं आती । उसके लिए भी भगवान की कृपा चाहिये । कठोर कर्म वाले की समझ में यह नहीं आयेगा । वह तो यही कहेगा कि भगवान क्या करें ? हमारा पुरुषार्थ ही प्रमुख है। ऐसे मनुष्यों के साथ वादविवाद न करें । यह चर्चा का विषय नहीं है, अनुभूति का विषय है। भव्यत्व सबका समान होता है, परन्तु तथाभव्यत्व प्रत्येक का भिन्न होता है । इसीलिए १५ भेदों से जीव सिद्ध होते हैं । सिद्ध (३३०00mooooooooooooooooo कहे कलापूर्णसूरि - ३)

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