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* हमने चारित्र प्राप्त कर लिया अतः काम हो गया, यह न माने । दूसरों को यह चारित्र देने का प्रयत्न करें, तो ही आपका यह गुण टिकेगा । 'एकेन्द्रियाद्या अपि हन्त जीवाः'
- विनयविजयजी एकेन्द्रिय आदि जीव भी मनुष्य बन कर कब जैन धर्म प्राप्त करके सुखी होंगे ? - इस प्रकार भावना भानी है।
पर-हित-चिन्तन के बिना स्व-हित भी कहां होने वाला है ? पर-हित चिन्तन की अनेक बातें सुनने पर भी हमारे विनय वैयावच्च में कोई फरक न आये तो अपने लिए सुनना व्यर्थ समझें ।
मोक्ष की साधना में जितना वेग लायेंगे, उतने ही शीघ्र मोक्ष में जायेंगे । निगोद के जीवों के लिए स्थान खाली होगा । वे स्थान खाली होने की प्रतीक्षा कर रहे हैं ।
___कैद में से निकला हुआ कैदी दूसरों को भी जेल में से मुक्त करने का प्रयत्न करता है, उस प्रकार हमें भी दूसरों को संसार में से निकाल ने का प्रयत्न करना है ।
* ऐसा एक उदाहरण बताएं, जिसमें देव-गुरु की भक्ति के बिना कोई मोक्ष में गया हो । आप शायद मरुदेवी माता का नाम बतायेंगे, परन्तु आप यदि 'शत्रुजय - माहात्म्य' पढ़ें तो आपको मालूम होगा कि भगवान के प्रति अपार प्रेम से ही उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ है। भगवान के साथ माता-पिता आदि के सम्बन्ध की तरह पुत्र का सम्बन्ध भी जोड़ा जा सकता है । (७) पुरिससीहाणं ।
इस विशेषण से भगवान का सिंह-तुल्य पराक्रम देखने को मिलेगा । उत्कृष्ट पराक्रम के बिना मोहनीय आदि कर्मों का क्षय नहीं होगा ।
* समस्त जीवों के प्रति मैत्री-भाव का व्यवहार करें, आत्मवत् व्यवहार करें, इससे भी आगे बढ़कर परमात्म-तुल्य भाव से व्यवहार करें । यह जिनशासन का सार है।
* 'पुरिससीहाणं' पद से सांकृत्य मत का निरसन हुआ है । संकृत के शिष्य सांकृत्य कहलाये हैं। उनकी मान्यता है कि (कहे कलापूर्णसूरि - ३
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