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पट्टधर के साथ, बेंगलोर के पास, वि.सं. २०५२
१०-९-२०००, रविवार भादौं शुक्ला-१२ : खीमईबेन धर्मशाला
सम्मान समारोह धर्मीचंदजी विनायकिया (विजयवाडा) :
यहां आकर मुझे अत्यन्त लाभ हुआ । मैं तो मानता हूं कि चातुर्मास में रहना मेरे लिए शिविर ही हो गया । अनेक प्रकार के धर्माचरण मेरे जीवन में 'प्रेक्टिकल' हो गये ।
अगाधता समुद्र की लज्जा रही है ज्ञान से । उदारता भी कर्ण की हारी है श्रुतदान से ।
सौम्यता को देख कर चांद भी करता रुदन, सूरि कलापूर्ण के चरण में हम करे शत शत नमन
पूज्यश्री की निश्रा में हम सब एक दूसरे के लिए कल्याणमित्र बने हैं । पूज्य गुरुदेव को प्रार्थना है कि हमें भी मुक्ति में साथ ले जायें ।
रजनीकान्तभाई, मदनलालजी कावेडिया आदि आराधकों ने भी अपने उद्गार व्यक्त किये ।
अध्यात्मयोगी पूज्य आचार्यश्री :
शत्रुजय की गोद में ऐसा अनुमोदना का अवसर अपनी (कहे कलापूर्णसूरि - ३ 55 56
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