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आध्यात्मिक पूंजी है । किसी मिल आदि की एजेन्सी मिलने पर आनन्द होता है तो यहां अनुमोदना का अवसर मिलने पर क्या आनन्द नहीं होता? आध्यात्मिक गुणों के विकास के लिए अत्यन्त आवश्यक धर्म-वावणी है गुण-गुणवान की प्रशंसा । अनन्त पुद्गल परावर्त के बाद ही यह मिलता है । यही बीज है । बीज के बाद में अंकुर आदि दुर्लभ नहीं है, बीज ही दुर्लभ है ।
इस चातुर्मास में दोनों समाजों ने (वागड़ बीसा ओसवाल तथा वागड़ सात चौबीसी बीसा श्रीमाली) मिलकर योजना बनाई । ओसवाल समाज भाग्यशाली रहा कि ठेठ चैत महिने से अभी तक उन्हें लाभ मिला । आपका अखण्ड भक्तिभाव देख कर प्रसन्नता हुई है। हमारे अतिरिक्त किसी ने विहार भी नहीं किया । इस श्रावक-श्राविका संघ को हम क्या देते हैं ? उस सम्बन्ध में हमें सोचना है। हमारी ओर से उपदेश देने में कमी भी रह गई हो । आपके मन और कानों को जो प्रिय लगे वह हमें परोसना पड़ता है । परोसने वाले को ध्यान रखना पड़ता है कि उसे शायद दस्ते आदि न लगें, पेचिश न हो और बदहजमी न हो ।
ऐसा कुछ हुआ हो । लोग विविध प्रकार के होते हैं । हो भी , सकता है । आप की व्यवस्था उत्तम है, फिर भी हमारी ओर से आवेश में ऐसा कुछ बोला गया हो तो उन शब्दों को याद न रखें, भूल जायें । पूज्य पद्म-जीतविजयजी से लगाकर समस्त गुरु भगवंतों ने जो हम पर जवाबदारी रखी - इस वर्ग को भूलें नहीं । अतः भले सात-आठ वर्ष हम बाहर घूम आये, परन्तु अन्त में आये न ? दोनों समाज खास कभी भी शामिल नहीं होते, शामिल नहीं रहते, परन्तु इस समय दोनों ने साथ मिलकर चातुर्मास कराया न ?
कोई बोझ नहीं लगा न? प्रेमजीभाई ! क्या कोई बोझ लगा ? आपने सुना होगा कि अहमदाबाद में अभी स्वधर्मियों के लिए नौ करोड़ रूपये एकत्रित हुए । यह सब सुनकर हमें प्रेरणा लेनी है ।
यहां आराधकों में मात्र आपके समाज के नहीं, भारतभर के लोग आते रहते हैं । चातुर्मास के आराधकों के अतिरिक्त भी पांचपच्चीस दिन तक रहनेवाले भी होते हैं, परन्तु आपने कदापि इनकार (२९८ 000000000ooooooooooo कहे कलापूर्णसूरि - ३)