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भगवान की कृपा के बिना ऐसा विचार नहीं आ सकता । मेघकुमार के हाथी के भव में भी यह कृपा ही काम करती थी । पाप नहीं करने का विचार भगवान के प्रभाव से ही आता है ।
नेत्रों में से झरती करुणा के प्रभाव से चण्डकौशिक जैसे के चंड-प्रचण्ड क्रोध का शमन कर देना, उन भगवान की करुणा कितनी तीक्ष्ण, कितनी प्रभावशाली होगी ?
ऐसी करुणा के सागर भगवान पुरुषोत्तम न हों तो दूसरे कौन होंगे ?
दया, दान एवं करुणामय जितने पुरुष होते हैं, उनमें भगवान प्रथम नम्बर पर आते हैं । अतः भगवान को पुरुषोत्तम कहा गया है ।
दया, दान आदि ऐसे दस गुण यहां बताये हैं । भगवान का सर्व प्रथम गुण है
परोपकार । आकालमेते
परार्थ व्यसनिनः ।
( २ ) उपसर्जनीकृतस्वार्थभावाः ।
भगवान स्वाभाविक रीति से ही परोपकार-व्यसनी होते हैं । वे स्वार्थ को गौण मानकर चलते हैं । नयसार के भव में देखो । अपने खाने के समय दूसरे को खिलाने का विचार आता है । यही परार्थता है । नयसार ने पहले भोजन नहीं किया । वे पहले महात्मा को बुलाने जाते हैं ।
इसके समक्ष हम कैसे हैं ? हो सके वहां तक दूसरे का काम नहीं ही करना । विवशता हो तो ही करना । चार घड़े पानी लाना हो तो चार घड़े ही लाना । अधिक नहीं । कहीं अधिक पुण्य बंध जाये न ? परार्थ व्यसनिता की बात जाने दो । हम में परार्थ की एक बूंद भी नहीं है । 'हमारा' शब्द का मैं इसलिए प्रयोग करता हूं क्योंकि मैं भी साथ ही हूं । लुणावा में पूज्य पं. भद्रंकरविजयजी महाराज में देखा । चाहे जैसी तबियत हो तो भी उनकी परार्थता सतत चलती ही रहती थी । वे किसी को भी निराश नहीं करते थे ।
भगवान तो वृक्ष में भी कल्पतरु बनते हैं, पत्थर में चिन्तामणि बनते हैं । वहां भी परोपकार होता रहता है ।
३०६ ८८wwwwwwww कहे कलापूर्णसूरि- ३