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अनुभव दशा का वर्णन सुनकर डरें नहीं ।
अन्य कुछ न कर सको तो प्रभु का प्रेम तो कर सकते हैं न ? परन्तु उसके लिए अन्य प्रेम छोड़ना पड़ता है । एक पत्नी भी 'बालक' किसका ? ऐसा पूछेगे तो उसके पिता का नाम देगी, क्योंकि सम्पूर्ण प्रेम वहां समर्पित कर दिया है । वह स्वयं को कदापि आगे नहीं करेगी ।
प्रभु के प्रति समर्पित व्यक्ति भी कदापि अपना नाम आगे नहीं करता ।
गौतम स्वामी कितने समर्पित होंगे ? भगवान के कहने से वे श्रावक को मिच्छामि दुक्कडं देने गये थे ।
हमने समर्पण भाव खो दिया । इस लिए न तो भगवान की शक्ति प्राप्त कर सकते हैं, न गुरु की ।
* जो शून्य बन गये वे ही पूर्ण बन गये ।
* ये भगवान ही हमें सब देते हैं, अन्यथा इस समय हम पर कौन रहा ?
बादल घिर आये हैं, अतः शीघ्र समाप्त करता हूं ।
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30 पूज्यश्री तो तीर्थंकर-तुल्य हैं। उनके मुंह से निकला
हुआ शब्द यदि पुण्यानुबंधी पुण्य बांधा हो तो ही सुनने को मिलता है।
___ मैं तो नित्य वांकी में वाचना में से आकर कहती - 'जिनालय में त्रिशलामाता के दुलारे वर्धमान स्वामी हैं, जबकि त्रिशला भवन में खमा देवी के दुलारे तीर्थंकरतुल्य पूज्यश्री है ।।
तब कदाचित् सभी शब्द नहीं भी सुने हों, परन्तु इस पुस्तक में रहे शब्द पढ़कर ऐसा ही होता है कि मानो पढ़ते ही रहें । पुस्तक पढ़े बिना चैन भी नहीं पड़ता ।।
- साध्वी मुक्तिप्रियाश्री
(२२४Boooooooooooooooooon कहे कलापूर्णसूरि - ३)