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परन्तु उन गुरु को दीक्षा प्रदान करने वाले उनके गुरु हैं । इस प्रकार आगे चलने पर भगवान आयेंगे ।
आकाश में तारे कितने हैं ? रोहणाचल में रत्न कितने हैं ? उस प्रकार संघ में गुण कितने हैं ? 'इत्यालोच्य विरच्यतां भगवतः संघस्य पूजाविधिः ।'
__- सिन्दूर प्रकर हमें शक्ति मिल रही है वह संघ का प्रभाव है । नवकार में संघ को नमस्कार कैसे आया ?
तीर्थंकर को नमन करने से तीर्थ को नमस्कार आ ही गया । शेष परमेष्ठी स्वयं तीर्थरूप हैं । नवकार में संघ को (तीर्थ को) नमस्कार आ ही गया है। अतः अलग नमस्कार की आवश्यकता नहीं है।
तीर्थंकर स्वयं तीर्थंकर भी हैं और तीर्थ भी हैं । तीर्थंकर स्वयं मार्गदाता भी हैं और मार्ग भी हैं । देखें भक्तामर -
_ 'त्वामेव सम्यगुपलभ्य जयन्ति मृत्यु ।
नान्यः शिवः शिवपदस्य मुनीन्द्र पन्थाः ॥' मरुदेवी माता को तीर्थंकर के आलम्बन से ही केवलज्ञान प्राप्त हुआ है न ? मरुदेवी माता ने तीर्थंकर को देखे और प्रभु का ध्यान लग गया ।
इसीलिए अन्य लिङ्ग अथवा अतीर्थ सिद्ध की बात आये वहां भगवान या भगवान का नाम आलम्बन के रूप में समझ लें । उपादान स्वयं ही पुष्ट निमित्त के बिना कार्यकारी बन नहीं सकता । पू. देवचन्द्रजी की बात (उपादान आतम सही रे, पुष्टालंबन देव) अच्छी तरह याद रखें ।
उपादान एवं उपादान कारणता भिन्न वस्तु हैं । हम उपादान हैं, परन्तु उपादान कारणता अभी तक प्रकट नहीं हुई है। उसे तो प्रभु ही प्रकट कर सकते हैं । 'उपादान कारणपणे रे, प्रगट करे प्रभु सेव' ।
- पूज्य देवचन्द्रजी एक भी प्रतिमा लकड़े अथवा पत्थर में से अपने आप बन
(२२६ 000000000000000000 कहे कलापूर्णसूरि - ३)