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प्रभु ने अपने व्यक्तित्व को एक किया ।
हे सिद्धो ! आप एक हैं, संगठित हैं । हम पर संगठितता एवं एकता की वृष्टि करो ।
तन्तुओं से बना रस्सा हाथी को भी बांध सकता है ।
लकडियों के भारे को पहलवान भी तोड़ नहीं सकता । हमारी एकता बाह्य एवं अभ्यन्तर विघ्न का नाश कर सकती है ।
'आत्मवत् सर्व भूतेषु' 'अप्पसमे मनिज्ज छप्पि काए ।' 'सर्व जीवों को अपनी आत्मा के समान मान ।'
'जं हंतुमिच्छसि अप्पाणमेव जाणाहि ।' जिसे मारना चाहते है वह तू स्वयं है, यही मानना ।
यह संवेदनशीलता की पराकाष्ठा है ।
संघ में शामिल होने से पूर्व हम सामान्य थे । हमारी शक्तियां सुषुप्त थीं । व्यक्ति के रूप में हम सब सामान्य होते, परन्तु प्रभु ने हमें संगठित किये, विशिष्ट बनाये ।
प्रत्येक आत्मा में आप अपना प्रतिबिम्ब देखें । समाना हृदयानि - वेद
'अप्पा सो परमप्पा' आत्मा ही परमात्मा है - ऐसा प्रभु का कथन है । प्रभु-भक्त बाद में बनना, पहले भक्त के भक्त बनें । भगवान का भक्त अर्थात् चतुर्विध संघ ।
दूध एक ही होता है। तेजाब मिलने पर फट जाता है। शक्कर मिलने पर मधुर बनता है। हमें क्या बनना है ? तेजाब बनना है कि शक्कर ?
आप एकतावादी बनें, विभाजनवादी नहीं ।। एकता के सूत्रधार संघ को अनन्त नमन ।
चन्द्रकान्तभाई : भादौं शुक्ला ६ को सामूहिक रथयात्रा निकलेगी । तीन-चार रथ होंगे। भादौं शुक्ला ५ को सामूहिक क्षमापना एवं चढ़ावे (बोलियां) होंगे । आमदनी आणंदजी कल्याणजी पेढ़ी में जायेगी।
भादौं शुक्ला ६ के साधर्मिक वात्सल्य का सम्पूर्ण लाभ पार्वतीबेन हरखचन्द वाघजी गींदरा, आधोई (कच्छ) की ओर से लिया गया है। (कहे कलापूर्णसूरि - ३ Wommswwwwwwwwws २५७)