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पू. देववि. के साथ पूज्यश्री, वि.सं. २०२२, भुज
२०-८-२०००, रविवार
भाद्र. कृष्णा -५
तीर्थ स्थापना को २५०० से अधिक वर्ष होने पर भी आज भी वह सक्रिय है जो प्रभु के अचिन्त्य प्रभाव को व्यक्त करता है।
अरिहन्त में बारह गुण होते हैं, अठारह दोष नहीं होते, यह सब तो हम जानते हैं, परन्तु भगवान का अचिन्त्य प्रभाव हम नहीं जानते । इस 'ललित विस्तरा' के द्वारा अचिन्त्य प्रभाव जानने को मिलेगा ।
इस समय ज्यादा से ज्यादा तो क्षयोपशम का समकित होगा, क्षयोपशम के गुण होंगे, परन्तु क्षायिकभाव का समकित बाकी है । दर्शन सप्तक के क्षय के बिना क्षायिक भाव नहीं मिलता ।
दर्शन सप्तक मरे या मंद हो तो ही भीतर का आनन्द अनुभव करने की तीव्र उत्कण्ठा होती है ।
क्षपकश्रेणी लगाने वाले को चौदह पूर्व चाहिये ही, ऐसा नहीं है । यदि ऐसा हो तो माषतुष मुनि केवल ज्ञान नहीं प्राप्त कर पाते ।
माषतुष मुनि जैसे केवल ज्ञान प्राप्त कर सकें वहां क्या प्रभु का अचिन्त्य प्रभाव दिखाई देता है ? (२६८00000000000000000000006 कहे कलापूर्णसूरि - ३)