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पर मुग्ध है और इस समय भी व्याख्यान में 'पंचसूत्र' ही चालु है न ?
उस समय उनके पास नित्य रहनेवाली घड़ी भी बंध हो गई थी, मानो वह भी आघात से स्तब्ध हो गई हो ।
(पूज्य कनकसूरिंजी के गुरु-पूजन की बोली हरखचन्द वाघजी, गींदरा, आधोई ।
आज १५०० आयंबिल होंगे। अभी रू. २०/- का संघपूजन है । दोपहर में सामूहिक सामायिक और सायंकाल में कुमारपाल की आरती का कार्यक्रम रहेगा ।)
नीति पर दृढ़ता अमेरिका में बसे एक सज्जन बैंक में डाइरेक्टर के पद पर नियुक्त हुए । उन्हें ग्राहकों को ऋण देने का कार्य सौंपा गया । एक बार ऋण के कागज़ देखने पर ध्यान आया कि इसमें तो कत्लखाने के जैसे कार्य होते हैं और उन्हों ने वह पद छोड़ दिया । छः माह तक बिना नौकरी के बैठे रहना पड़ा । अनेक कष्टों का सामना किया, परन्तु बुरा कार्य छोड़ने का आनन्द उन्हें कष्टों में भी व्याकुल नहीं करता था । वे सद्बुद्धि से श्रद्धा में टिके रहे ।
सुनने में आया कि मछली पकड़ने के जालों की बड़ी फैक्ट्री प्रारम्भ हुई । उसके शेअर जैनों ने भी खरीदे थे। उसमें बुद्धि भी कैसी । श्रद्धा का तो मानो अकाल ही पड़ गया ।
- सुनन्दाबेन वोरा कश
(२४६ Boooooooooooooooooom कहे कलापूर्णसूरि - ३)