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* कोई चन्दन का विलेपन करे अथवा कोई बांस से छाल उतारे, फिर भी जिसकी समता खण्डित नहीं हो, वह सहज क्षमा है। जब तक ऐसी क्षमा न आये तब तक क्षयोपशम भाव की क्षमा तो रखें ।
भगवान के पास हमने प्रतिज्ञा ली है कि 'राग-द्वेष नहीं करेंगे, सावध का सेवन नहीं करेंगे और किसी के प्रति वैर-विरोध नहीं करेंगे ।'
क्या इस प्रतिज्ञा का . पूर्ण रूप से पालन होता है ? मरणान्त कष्टों के समय भी हमारे पूर्वषियों ने समता रखी है।
* चौदहवे गुण स्थानक में मन-वचन-काया रूप योगों का भी त्याग होने पर योग संन्यास होता है ।
पू.हेमचन्द्रसागरसूरिजी:धर्म-संन्यास में किसका त्याग होता है?
पूज्यश्री : क्षयोपशम भाव के क्षमा आदि गुण छोड़ने होते हैं । क्षायिक भाव के क्षमा आदि गुण प्राप्त करने होते हैं ।
__नई सीढ़ी पर चढ़ना हो तो पिछली सीढ़ी छोड़नी ही पड़ती है । पुरानी सीढ़ी को पकड़ी रख कर आप नई सीढ़ी प्राप्त नही कर सकते ।
* प्रभु की शान्त मुद्रा देखते ही मरुदेवी माता के भीतर समस्त भूमिकाएं तीव्रता से आती गई और अन्त में निर्विकल्प अवस्था प्राप्त करके उन्हें केवल ज्ञान प्राप्त हो गया ।
* प्रभु योग - क्षेमंकर कहलाते हैं ।
आगे आयेगा - भगवान धर्म का पालन करते हैं, धर्म का प्रवर्तन कराते हैं, स्थिर करते हैं ।
भगवान ऐसे हैं । वे पहले धर्म के साथ योग कराते हैं, फिर स्थिर परिचित कराते हैं और उसके बाद विनियोग कराते हैं ।
ये समस्त भेद-प्रभेद अभी बताने की आवश्यकता क्यों ? अभी तो कोई सिद्ध नहीं करने हैं, परन्तु इसलिए जानने हैं कि यह सब जानकर इच्छा तो प्रकट हो । इच्छा प्रकट हो जाये तो भी काम हो जाये ।
* तीन योग :
नमुत्थुणं से इच्छायोग । (२२२Wommmmmmmmmomooooooo कहे कलापूर्णसूरि - ३)