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तो तैयार है और आप उसमें बैठ सकते हैं, परन्तु यहां कोई 'लिफ्ट' तैयार नहीं है । आपको स्वयं को वह तैयार करनी पड़ती है । ... इस तरह सम्पूर्ण ढाई द्वीप तीर्थ है, क्योंकि सभी जीव यहीं से मोक्ष में गये हैं । ढाई द्वीपों में भी सिद्धाचल सबसे उत्तम (सर्वोत्तम) क्षेत्र है, जहां से सर्वाधिक जीव मोक्ष में गये हैं । इस पावन धरा का यह विशिष्ट प्रभाव है ।
यहां आने पर विशिष्ट आत्मवीर्य उल्लसित होता है।
आत्मवीर्य-सूचक आठ शब्द हैं - वीर्य, शक्ति, बल, पराक्रम, उत्साह, स्थाम, चेष्टा एवं सामर्थ्य ।
आत्मशक्ति भिन्न-भिन्न प्रकार से कार्य करती है, अतः उसे बताने वाले शब्द भी भिन्न-भिन्न हैं । कोई शक्ति धोबी की तरह धोकर कर्मों को छिन्न-भिन्न करती है, कोई शक्ति ऊपर उछाल कर नीचे गिराती है, कौई कूट-कूट कर कर्मों को बिखेरती है - ऐसा 'ध्यान-विचार' में स्पष्ट किया है ।
* केवल ज्ञान की जघन्य, मध्यम, उत्तम अवगाहना कितनी है ? ऐसा शास्त्र में प्रश्न आता है ।
यह तेज-पुंज रूप केवलज्ञान की अवगाहना की बात है।
उत्कृष्ट अवगाहना लोक व्यापी है, जो समुद्घात के चौथे समय में होती है । लोक व्यापी ध्यान से केवली इस प्रकार कर्मों का क्षय करते हैं -
ऐसा समुद्घात प्रत्येक छ: माह में एक बार तो होता ही है । इसका अर्थ यह है कि प्रत्येक छ: माह में एक केवलज्ञानी का साक्षात्कार तो होता ही है । यदि अपनी भूमिका तैयार हो तो आत्म-शक्ति में उल्लास की वृद्धि होती है ।
समय सूक्ष्म होने के कारण चाहे पकड़ नहीं सके, परन्तु कार्य रूप में अनुभव कर सकते हैं ।
- चक्रवर्ती की पत्नी के बालों का स्पर्श कराकर मोहराजा यदि अपना चमत्कार बता सकता है तो केवली का स्पर्श चमत्कार का सृजन क्यों नहीं कर सकता ?
[१९०00ooooooooooo.0000000 कहे कलापूर्णसूरि -३)