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अकेले हाथ से सटीक ४५ आगम छपवाये । अन्य अनेक ग्रन्थ भी छपवाये । उनकी प्रस्तावना मूल ग्रन्थ से भी कठिन होती है। केवल प्रस्तावना लिखने में भी कितना समय लगा होगा ? सभी प्रस्तावनाओं के संग्रह के रूप में एक अलग पुस्तक भी छपी है।
__ अभयदेवसूरिजी के गांव में ही जन्मे इन सूरिजी ने टीका तो नहीं लिखी, परन्तु प्रस्तावना भी अद्भुत है। उनके व्याख्यान भी अद्भुत थे ।
हमारे पूज्य मुक्तिचंद्रसूरिजी कहते थे : सूत्र को चौड़ा करना हो तो पूज्य रामचंद्रसूरिजी का व्याख्यान और गहरा करना हो तो पूज्य सागरजी के व्याख्यान पढ़ने चाहिये ।
आगम तो उन्हें कण्ठस्थ थे । उनके व्याख्यान तो आगम तत्त्वों के भण्डार थे । अभी व्याख्यान साहित्य अप्रकाशित भी बहुत है ।
वे छोटे से जीवन में सब पूरा करके गये । हमारे पास 'टीम' होने पर भी हम वह कार्य पूरा नहीं कर सकते ।
पूज्य पं. भद्रंकरविजयजी म. का साहित्य पढ़ता हूं तो विचार आता है कि यह शैली किसकी है ? पूज्य रामचन्द्रसूरिजी की तो है ही नहीं । पूज्य भुवनभानुसूरिजी तो छोटे थे । तो यह प्रदान किसका है ?
मेरे गुरुदेव पूज्य पं. भद्रंकरविजयजी म. कहते थे : मैं आठ वर्ष का था तब बड़े पिताजी (भोगीभाई ने) पाटन में वि. संवत् १९७३ में पूज्य सागरजी को वाचनाओं के लिए तीन वर्ष रखे थे । आठ वर्ष का मैं, नित्य वहां बैठा रहता । वे लिखने-पढ़ने में व्यस्त रहते थे, ज्ञान की जगमग ज्योति जलती ।
पूज्य सागरजी के पास बैठे रहने से ही उनका प्रभाव उनके साहित्य पर पड़ा है।
* भूराभाई पंडित (सरस्वती पुस्तक भंडारवाले) कहते थे कि शासन के चार स्तम्भ हुए हैं : (१) मन्दिरों का जीर्णोद्धार करानेवाले पूज्य नेमिसूरिजी (२) आगमों का जीर्णोद्धार करनेवाले पूज्य सागरजी महाराज । (१०६ wwwwwwwwwwwwwmoms कहे कलापूर्णसूरि - ३)