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पूज्य सागरजी में ये चारों बातें थी । इसीलिए वे महापुरुष कहे जा सकते हैं ।
अपने गुरुदेव पूज्य झवेरसागरजी का सान्निध्य मात्र नौ महिनों के लिए ही मिला, फिर भी गुरु-सेवा के माध्यम से उन्हों ने जो कृपा प्राप्त की वह अद्भुत थी ।
कालधर्म के समय पूज्य झवेरसागरजी का हाथ उनके सिर पर था । उन्हों ने कहा था, 'बेटे ! आगमों का ध्यान रखना ।' . उनकी घटनाओं में 'सत्त्वशीलता' दृष्टिगोचर होती है ।।
वे चारित्र-पालन करने में कितने चुस्त थे? कितने ही अभिग्रह धारण करते, जो पूर्ण न हो सकें वैसे थे; तो भी वे अभिग्रह पूर्ण हुए ।
विपुल ज्ञान-वैभव का वर्णन तो सुन ही लिया है ।
उन महापुरुष के गुणानुवाद से हम गुणानुरागी बनें, यही अभ्यर्थना है।
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पुस्तक पढ़ने पर आये आनन्द को व्यक्त करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं ।
- साध्वी मुक्तिरसाश्री
जीव मैत्री, जिन-भक्ति एवं गुरु-भक्ति कैसी महान् है ? इसका हार्द इस पुस्तक में अत्यन्त ही गहराई से समझाया गया है ।
___ - साध्वी नयगुणाश्री
वाचना की प्रसादी स्वरूप इस पुस्तक का पठन हमारे भीतर प्रसन्नता की ऊर्मियां उत्पन्न करें और प्रभु के प्रति प्रेम उत्पन्न करें, वैसी अपेक्षा है ।
- साध्वी ज्योतिदर्शनाश्री
कहे कलापूर्णसूरि -३ooooooooooooooooooo १०९)