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चंदाविज्झय में कहा है कि विनय स्वयं भी साध्य है । विनय के द्वारा ज्ञान साध्य है यह अनेक बार सुना परन्तु विनय साध्य है ऐसा कभी सुना है ? चंदाविज्झय ग्रन्थ जोर देकर कहता है कि गुरु बनने का नहीं, शिष्य बनने का प्रयत्न करें । अभिमान आपको गुरु बनने का कहता है, विनय शिष्य बनने का कहता
* पूज्य लब्धिसूरिजी के गुरु पूज्य कमलसूरिजी वृद्धावस्था में भी स्वाध्याय आदि में तल्लीन रहते थे । ग्रन्थ उनके हाथ में पड़े ही रहते । कोई पूछता तो कहते - यह तो मेरा स्वभाव है, यह तो सांस है । इनके बिना कैसे जीवित रहा जा सकता है ? दरजी का लड़का, जीये तब तक सियें । ज्ञान का अध्ययन ही हमारा धंधा है । ८० वर्ष की आयु में भी हमें विद्यार्थी ही रहना है । विद्या का अर्थी हो वह विद्यार्थी ।
* पृथ्वीचन्द्र-गुणसागर आदि की कहानियां बचपन में सुनता था, तब मन में विचार आता कि हम भी ऐसे शीलवान कब बनेंगे ?
बचपन में पूजा में 'संयम कबही मिले ससनेही प्यारा' बोलते समय हृदय बोलने लगता था कि मैं कब संयम ग्रहण करुंगा ?
बचपन की हमारी भावना ही बड़ी आयु में साकार बनती
* यहां बैठे हुए अधिकतम लोग बाल-दीक्षित हैं । बचपन में बहुत अध्ययन किया है, परन्तु मैं पूछता हूं अब उनमें से कितना कण्ठस्थ है ? इस समय बैठे हुए बाल मुनियों को विशेष तौर से कहना है कि आप जो करें वह भूलें नहीं । व्यापारी कमाने के पश्चात् धनराशि खो नहीं देता । तो हम ज्ञान की धनराशि कैसे खो सकते हैं ?
बाल मुनियों को कहना है कि इस शास्त्र में कदाचित् कोई बात आपकी समझ में न आये तो भी परेशान न हों । मनोरथ बनायें कि बड़े होकर हम इन समस्त ग्रन्थों का अध्ययन करेंगे । . * थर्मामीटर से ज्वर की उष्णता (तापक्रम) ज्ञात होती (कहे कलापूर्णसूरि - ३ woommmmwwwwwwwwwwww १५९)