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तलवार, आदि से होने वाली बाह्य पीड़ा खतरनाक होती है कि भीतर कषाय आदि की पीड़ा खतरनाक होती है ? गहराई से देखोगे तो भीतर की (आन्तरिक) पीड़ा खतरनाक प्रतीत होगी । आन्तरिक पीड़ा को नष्ट करने वाले भगवान हैं ।
तुभ्यं नमस्त्रिभुवनार्त्तिहराय नाथ ।' भगवान तीनों भुवनों की ऐसी पीड़ा को 'नाश करने वाले
- भक्तामर ___ क्रोध की कैसी वेदना से चंड़कौशिक पीड़ित था ? उसके नेत्रों में विष कहां से आया ? पूर्व भव में क्रोध के जो गहरे संस्कार पड़े थे उनके प्रभाव से चंडकौशिक के नेत्रों में विष आया । क्रोध को विष कहा गया है। यह केवल उपमा ही नहीं है, परन्तु इस प्रकार वास्तविक भी है ।
__ अपनी दृष्टि में भरे हुए विष से वह अन्य को भस्म कर देता था । अतः आप यह न मानें कि दूसरे ही पीड़ा प्राप्त करते थे और वह स्वयं पीडा-मुक्त था । कोई भी क्रोधी व्यक्ति दूसरों को पीड़ित करता है, उससे पूर्व वह स्वयं को ही पीड़ित करता है । इस महान् सत्य को समझ लें ।
* जैन गुरु का सम्मान जगत् में सर्वोत्कृष्टता पूर्वक होता है, यह भगवान का प्रभाव मानें । मद्रास में प्रतिष्ठा के अवसर पर हजारों अजैन मनुष्य दर्शनार्थ आते थे । उस समय यह प्रतीत हुआ कि अजैनों में भी जैन सन्तों के प्रति कितना आदर है ? भले वे लोग मांसाहारी थे, परन्तु हृदय के सरल थे । सात व्यसन खतरनाक हैं । इतनी बात करें और वे सातों व्यसन छोड़ने के लिए तत्पर हो जायें । यहां आपको केवल कन्दमूल छुड़वाना हो तो भी हमें खून का पानी करना पड़ता है । एक डॉक्टर को मैंने मांसाहार छोड़ने की बात कही और उसने तुरन्त स्वीकार कर ली । कोई बात समझाने की आवश्यकता नहीं पड़ी । फीस लेने की तो बात ही कहां ?
ओसवाल सभी मांसाहारी क्षत्रिय थे, परन्तु पार्श्वनाथ सन्तानीय पू. रत्नप्रभसूरिजी के उपदेश से (अम्बिका देवी की प्रेरणा से) मांसाहार (१३०Booooooooooooooooooo कहे कलापूर्णसूरि - ३)