________________
पू. जगवल्लभसूरिजी के साथ, पालिताना, वि.सं. २०५६
२-८-२०००, बुधवार
सावन शुक्ला-३
* किसी कैदी को कारागार से मुक्त करने के लिए कोई सज्जन प्रयत्न करे उस प्रकार मोह की कैद में से छुड़ाने के लिए भगवान ने प्रयत्न किया ।
सम्यक्त्व अर्थात् कैद में से मुक्त होने की लगन ।
सम्यक्त्व में भी अपूर्व आनन्द आता हो तो मोक्ष में कितना आनन्द आता होगा ?
सम्यक्त्व आदि की प्रभावना करके भगवान सबको आनन्द की प्रभावना कर रहे हैं। यही भगवान की करुणा है, परार्थ व्यसनिता
'मुझे एक हजार वर्षों में मिला वह पलभर में कोई क्यों प्राप्त कर ले ?' (मरु देवी आदि) ऐसा भाव हमारे मन में आ सकता है, भगवान के मन में नहीं ।
ब्रह्माण्ड में सर्वत्र अरिहंत की करुणा कार्य कर रही है । सिद्धों ने हमें निगोद में से बाहर निकाला यह सही है, परन्तु सिद्धों को सिद्ध बनाने वाले भी अरिहंत ही हैं न ?
हमें मान-सम्मान मिलता है वह क्या अपने नाम से मिलता
(१२२
Commmmmmmmmmmmm कहे कलापूर्णसूरि - ३)