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पालिताना, वि.सं. २०५६
१-८-२०००, मंगलवार
सावन शुक्ला -२
* पंचांगी आगम का अपमान भगवान का अपमान है । आगमों में से किसी भी अंग को आप नहीं मानते अर्थात् भगवान को ही नहीं मानते । उनके अंग का छेदन करते हो अर्थात् भगवान का ही छेदन करते हों ।
'चूणि भाष्य सूत्र नियुक्ति, वृत्ति परस्पर अनुभव रे; समयपुरुषना अंग कह्या ए, जे छेदे ते दुर्भव्य रे ।'
- पूज्य आनन्दघनजी अनुभव एवं परम्परा भी साथ ले लिये हैं । इन छ: में से एक का भी अपमान अर्थात् भगवान का अपमान मानें ।।
टीकाकार हरिभद्रसूरिजी स्वयं आगम पुरुष हैं । उनकी रचना आगम तुल्य गिनी जाती हैं ।
उपाध्याय यशोविजयजी द्वारा रचित सवासौ गाथों के स्तवन पर पद्मविजयजी महाराज ने टबा लिखा है, जिसमें उल्लेख हैं कि हरिभद्रसूरि के ग्रन्थ भी आगम ही गिने जाते हैं । उनकी बात आप नहीं मानते तो आगमों को ही नहीं मानते । (११६
5 5550566600 कहे कलापूर्णसूरि - ३)