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पूज्य आचार्यश्री विजयकलापूर्णसूरिजी :
* शासन-नायक भगवान महावीर के अनुग्रह से तीर्थ की स्थापना हुई है तब से गणधरों से लगाकर आज तक परम्परा मिली है। उनमें से प्रत्येक महापुरुष को याद करके हम पवित्र बन सकते हैं । भगवान की तरह गुरु को याद करने से भी पवित्र बना जा सकता है।
शास्त्रों में कहा गया है : 'गुरु-बहुमाणो मोक्खो ।' . जीवन में गुरु का बहुमान जगे वही मोक्ष है । आठ कर्मों का क्षय होने पर मोक्ष होगा, तब तब की बात । उससे पूर्व ऐसा मोक्ष प्रकट करना है । गुरु को भगवान के रूप में देखना है। भगवान का परिचय कराने वाला भगवान से भी बढ़ जाता है । यदि गुरु न होते तो भगवान कहां से पहचान पाते ?
गुरु बहुमान से मोक्ष किस प्रकार ? मोक्ष तो कर्मों का क्षय होने से होता है । कर्म-क्षय से होने वाला मोक्ष गुरु के बहुमान से ही मिलेगा । इसीलिए गुरु-बहुमान को ही मोक्ष कहा है । इतनी बात जानने के पश्चात् गुरु के प्रति अपार बहुमान उत्पन्न होना चाहिये ।
गुरु-भक्ति के प्रभाव से अपनी आत्मा भगवान के साथ जुड़ जाती है।
जो भगवान प्रतिमा में हैं, वे ही भगवान गुरु में भी हैं । न हो ऐसा सम्भव ही कैसे ?
मुनिराज के मानस में हंस की तरह सिद्ध रमण कर रहे होते
सिद्ध सिद्धशिला पर भले रहे, परन्तु मुनि जब ध्यान करते हैं तब वे उनके हृदय में आते ही हैं ।
* अभी आगम मन्दिर के दर्शन करते समय क्या पू. सागरजी के दर्शन नहीं होते ? हृदय में आगम अंकित हो जायें, तत्पश्चात् दीवारों पर उत्कीर्ण करने की क्या आवश्यकता है ? आपको ऐसा होता होगा, परन्तु जिन आगमों के स्पर्श से लोहे के समान मेरी आत्मा स्वर्ण तुल्य बन गई, उसका दर्शन अन्य भी क्यों न करें ? आगम उत्कीर्ण कराने के पीछे पूज्यश्री की ऐसी भावना थी । (कहे कलापूर्णसूरि - ३ 66555555555 GOOGoooooo १०३)