________________
SCORIANRAISAARERNSERIALISARKIDSORAMERAMANG
NRODRIWOORNAMAARA
SAMRIDIHINDISNIO
S ARANASON
दक्षिण भारत में प्रतिष्ठा
२५-७-२०००, मंगलवार
श्रा. कृष्णा -९
गुणों आदि के लिए पुरुषार्थ करने पर भी वह गौण है, भगवान की कृपा ही मुख्य है। भगवान की कृपा से ही वे गुण आते हैं ।
देव एवं गुरु की कृपा भक्ति के अधीन है। गुरु की इच्छा नहीं होने पर भी शिष्य भक्ति के द्वारा उनकी कृपा प्राप्त कर सकता है । एकलव्य उसका उत्कृष्ट उदाहरण है । द्रोणाचार्य की कहां इच्छा थी ? फिर भी एकलव्य अर्जुन से भी बढ़कर तीरन्दाज बन गया ।
_ 'पत्ते में ये छेद किसने किये ? भौंकते हुए कुत्ते को किसने शान्त किया ?' यह कार्य एकलव्य का है, यह जानकर द्रोणाचार्य को भारी आश्चर्य हुआ । 'द्रोण गुरु की कृपा से ही मैं यह सीखा हूं ।' यह उत्तर सुनकर तो द्रोण के आश्चर्य का पार न रहा ।
यह हकीकत हम जानते हैं ।
गुरु की आप सेवा करते रहें । गुरु कदाचित् अल्प ज्ञानी होंगे तो भी आप उनसे भी अधिक ज्ञान प्राप्त कर सकोगे । गौतम स्वामी के पचास हजार शिष्य इसके उत्कृष्ट उदाहरण हैं । गौतम स्वामी के पास कहां केवल ज्ञान था ?, फिर भी पचास हजार (कहे कलापूर्णसूरि - ३ 6666666666666666666666 ५५)