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भुज चातुर्मास, वि.सं. २०४३
२६-७-२०००, बुधवार
श्रा. कृष्णा -१०
* जिनागम में प्रत्येक सूत्र अनन्त अर्थपूर्ण होता है। क्या बात मस्तिष्क में बराबर नहीं बैठती ? अनेक व्यक्तियों को मस्तिष्क में नहीं बैठती । पंजाब में व्याख्यान-दाता समयसुन्दरजी की इस बात में वहां के श्रोताओं को विश्वास नहीं हुआ, तब उन्हों ने दूसरे दिन एक ही वाक्य के आठ लाख अर्थ करके बताये । आज भी वह अष्टलक्षी ग्रन्थ विद्यमान है । 'राजानो ददते सौख्यम् ।' उक्त ग्रन्थ में इस वाक्य के आठ लाख अर्थ हैं ।
सामान्य वाक्य के भी आठ लाख अर्थ होते हैं तो भगवान की वाणी के अनन्त अर्थ क्यों नहीं हो सकते ?
गम्भीर अर्थों से परिपूर्ण ऐसे जिनागम मिलने पर कितना आनन्द होना चाहिये ?
_ 'नमस्कार-स्वाध्याय' नामक पुस्तक में 'नमो अरिहंताणं' के १०८ अर्थ किये हुए है, पढ़ लें ।
* चैत्यवन्दन नित्य सात बार करते ही हैं, परन्तु क्या यहां लिखे भाव हृदय में जगते हैं ? मैं कहता हूं - मेरे हृदय में ऐसे भाव नहीं जगते । श्री हरिभद्रसूरिजी अजैन कुल में उत्पन्न हुए (६२0000000000000000000 कहे कलापूर्णसूरि - ३)