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GURASHIRANIOS
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पट्टधर के साथ
२८-७-२०००, शुक्रवार
श्रा. कृष्णा -१२
* साक्षात् तीर्थंकर मिले हों वैसा आनन्द जिनागम पठन से होता है, जिन मूर्ति के दर्शन करने से होता है, क्योंकि जिनागम एवं जिनमूर्ति भगवान के ही रूप हैं ।
__ भगवान के समवसरण में भी तीन बिम्ब मूर्ति के ही हैं। वहां समवसरण में बैठे हुए लोग मूर्ति नहीं, भगवान के रूप में ही उसे देखते हैं ।
* नाम जिनकी स्तवना गणधरों ने सर्व प्रथम लोगस्स के द्वारा की है। 'अभिथुआ' अर्थात् सामने बिराजमान भगवान की स्तवना की ।
'जय वीयराय !' हे भगवन् ! तेरी जय हो, ऐसा तब ही बोला जा सकता है जब भगवान सामने हैं ऐसा लगता हो ।
* पुक्खरवरदी० वैसे तो श्रुतस्तव है, फिर भी पहले गाथा में श्रुत की नहीं, ढाई द्वीप में विद्यमान भगवान की स्तुति की है जो बताती है कि श्रुत एवं भगवान भिन्न नहीं हैं ।
श्रुत अर्थात् भगवान ।
श्रुत को आगे किया अर्थात् भगवान को ही आगे किया कहा जाता है ।
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000000000000066 कहे कलापूर्णसूरि - ३)