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* गुरु अपने नहीं, प्रभु के भक्त बनाते हैं ।।
* पूज्यश्री भी ये बातें भगवान की ओर से कहते हैं, अपनी ओर से नहीं । इस प्रकार ऋण-मुक्ति की पूज्यश्री ने कोशिश की है; मैं तनिक माध्यम बना, इस बात का हर्ष है ।
पूज्य आचार्यश्री सूर्योदयसागरसूरिजी : अरिहंत मंगलमय है । जैन-शासन का बुनियादी मन्त्र 'नमो अरिहंताणं' है । 'नमो अरिहंताणं' समर्पण भाव है।
यहां पहले 'नमो' है, तत्पश्चात् 'अरिहंत' है । अरिहंत में नहीं, 'नमो' में देने की शक्ति है । ___ 'नमो' अर्थात् भक्ति ! समर्पण !
अरिहंत तब ही फलदायी बनते हैं, यदि आप नमस्कार करो ।
* आप जिनालय में जाओ और 'निसीहि' कहें, परन्तु फिर कौन आया और गया यह ध्यान रहे तो 'निसीहि' कैसी गिनी जायेगी ?
- कांसे के बर्तन में पानी भरकर २४ घंटे रखे । खाली करने पर पानी कैसा होगा ? मिट्टी के बर्तन में पानी कैसा ठण्डा रहेगा ? आपको कैसा बनना है ? मिट्टी का बर्तन भले टूट सकता है, परन्तु अरिहंत का योग मिले तो वह अटूट बन सकता है ।
अनादि के भव्यत्व को तथाभव्यता के रूप में परिणमित करना हो तो तीन बातें करनी चाहिये : शरणागति, दुष्कृत गर्हा और सुकृत अनुमोदना । __'धम्म सरणं पवज्जामि ।' यह शरणागति है ।
पापों के पश्चाताप के द्वारा फिर अन्तर की शुद्धि करें, यह दुष्कृत गर्दा है।
दुष्कृत गर्दा करेंगे तो जगत् में सभी प्राणी सरस लगेंगे और उससे सुकृत-अनुमोदना होगी ।
पूज्य कलापूर्णसूरिजी के हृदय में भावना है कि समस्त अनुयायी भगवान के भक्त बन जाये ।
भगवान की 'सवि जीव करूं शासन-रसी' की भावना साकार करने के लिए हम सब मिल कर प्रयत्न करें ।।
पूज्य मुनिश्री धुरन्धरविजयजी : पूज्यश्री की ओर से सूचना आई है कि उपद्रव शान्त नहीं हुए, अतः प्रत्येक आराधक अपने [९६ Wooooooooooooooooo कहे कलापूर्णसूरि-३)