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एक भाई ने पूछा : 'हमारा उद्धार क्यों नहीं होता ?'
मैं ने कहा : एक बात है । चंडकौशिक को जब तक भगवान नहीं मिले तब तक सर्वत्र विष था, परन्तु हम कदाचित् जीभ पर से विष दूर करते हैं परन्तु हृदय में विष भरा रखते हैं ।
मैत्री का अमृत आने पर हृदय का विष चला जाता है । भगवान कहां जन्म लेते हैं ? कल्पसूत्र में लिखा है : तुच्छ, दरिद्र, कृपण आदि के कुल में प्रभु का जन्म नहीं होता । तुच्छ कुल में भगवान का जन्म नहीं होता तो तुच्छ हृदय में भगवान का आगमन कैसे होगा ? हृदय को विशाल बनायें ।
मेरे द्वारा
हरा वृक्ष समस्त पक्षियों के निमन्त्रण का कारण बनता है । हरा हृदय समस्त जीवों के आश्रय का कारण बनता है । * तुकाराम मार्ग में चल रहे थे और आहट से दाना चुगते कबूतर उड़ गये । तुकाराम के हृदय पर आघात लगा इन्हें कितना कष्ट हुआ ? कितना अन्तराय हुआ ? किसी की भूख तो कदाचित् मैं न मिटा सकूं, परन्तु क्या किसी को खाने भी न दूं ? ऐसा मेरा जीवन ?
वे वहीं बैठ गये, निश्चय किया जब तक कबूतर पुनः नहीं आयेंगे तब तक अन्न-जल का त्याग ।
तुकाराम की संकल्प-शक्ति से कबूतर पुनः आकर उनके कंधे पर बैठे ।
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* एक बहन के हाथ में से अंगूठी नीचे गिर गई । दूसरी बहन बोली : बहुत बुरा हुआ ।
उसने कहा : बहुत बुरा नहीं हुआ । कोई चुरा ले जाता तो अच्छा होता । कम से कम किसी के उपयोग में तो आती । खो गई अतः किसके काम आयेगी ? योगी न बनें तो किसी के लिए उपयोगी तो बनें ।
सर्वप्रथम घर से मैत्री का प्रारम्भ करना पड़ेगा । घर में नौकर आदि से प्रारम्भ करो । इसीलिए कल्पसूत्र में नौकरों के लिए कौटुम्बिक शब्द का प्रयोग हुआ है ।
नौकर आपको कभी भी कुटुम्बी लगा ?
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कहे कलापूर्णसूरि