________________
7
पदवी प्रसंग, मद्रास, वि.सं. २०५२, माघ सु. १३
सात चौबीसी धर्मशाला मण्डप
विषय
-
भक्ति
-
३०-७-२०००, रविवार श्रा. कृष्णा- १४
सामुदायिक प्रवचन
पूज्य आचार्यश्री विजयकलापूर्णसूरिजी :
* महान् पुण्योदय से इस मानव जन्म में प्रभु का शासन मिला, सच्ची पहचान कराने वाले गुरु मिले, दुःख - मुक्ति एवं सुखप्राप्ति का मार्ग मिला । इन्द्र को भी ईर्ष्या हो ऐसी प्राप्ति हुई है । सच्चा भक्त याचना करता है इन्द्र चक्रवर्ती का पद नहीं चाहिये, मुझे तो प्रभु का शासन ही चाहिये । आप इन्द्र के साथ यह सौदा करो तो इन्द्र तैयार हो जाये और इन्द्र को आप मूर्ख समझो और इन्द्र आपको मूर्ख समझे ।
* आज विषय है भक्ति । श्रावक को भक्ति बतानी नहीं पड़ती, वह तो उसमें व्याप्त ही होती है ।
* संसार में कौन सी वस्तु है जो प्रभु भक्त को न मिले ? यह सिद्धसेनदिवाकरसूरिजी का 'शक्रस्तव' में टंकार है । 'शक्रस्तव' में स्वरूप- सम्पदा बताने के पश्चात् उपकार-सम्पदा ९० Wwwwwwwwww
कहे कलापूर्णसूरि- ३