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( पूज्यश्री के वन्दन के पश्चात् आत्म - रक्षा मंत्र ) पूज्य श्री की ओर से सब को तीन बार नवकार दिया गया । पू. जिनचन्द्रसागरसूरिजी के द्वारा 'नमो अरिहंताणं' १०८ बार बुलवाया गया ।
पू. मुनिश्री धुरंधरविजयजी म. : समवसरण में अष्ट प्रातिहार्य युक्त भगवान बैठे हैं । ऐसे भावपूर्वक सभी एक घंटे तक 'नमो अरिहंताणं' का जाप करें ।
बहन के रूप में सम्बोधन का अवसर अमेरिका में निवास करने वाला वह युवक बचपन से परिचित था, अतः 'काकी' कह कर बुलाता था । उसके शहर में प्रवचन करने के लिए जाना पड़ा । उसके घर पर गई । घर में देखा मदिरा का ठेका था । देश के वेश के अनुसार व्यसन सेवन होता रहा । मैंने उसे उसका बचपन स्मरण कराया 'कहां तेरे माता-पिता के संस्कार और कहां यह दुराचार ?' उसके बाद धर्म की अनेक कथाएं कही ।
सायंकाल प्रवचन में उसे मेरा परिचय देना था । तब मैंने कहा 'बहन' कह कर परिचय देना ।' उसने परिचय देते समय सार्वजनिक रूप से कहा कि 'बहन' सम्बोधन का मुझे जो अवसर मिला उसके लिए मैं आज से मदिरा (शराब) पीने का त्याग करता हूं । पुण्ययोग से उसे धर्म की भावना वाले भाई की मित्रता थी, वह अधिक परिचित हुई और वह स्वयं ही धर्म-भावना में जुड़ गया ।
सुनन्दाबेन वोरा
( कहे कलापूर्णसूरि ३
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