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तीर्थमाल, शंखेश्वर, वि.सं. २०३८
२७-७-२०००, गुरुवार
श्रा. कृष्णा -११
(सामूहिक वाचना, समस्त समुदायों के पूज्यों का आगमन)
* अभिमानी इन्द्रभूति गौतम के अभिमान का विष नष्ट कर के उनमें विनय का अमृत सिंचन करने वाले भगवान महावीर स्वामी की करुणा-शक्ति का क्या वर्णन करें ?
* इन्द्रभूति के साथ उनके ५०० शिष्य भी साथ ही दीक्षित हुए । उनका स्वयं का गुरु के प्रति समर्पित भाव कैसा होगा ?
* परमात्म-गुणगान मंगलरूप है। उस गुण-गान में उपसर्गों को दूर करने की तथा चित्त को प्रसन्न करने की शक्ति है ।
* प्रीति आदि चारों अनुष्ठानों में उत्तरोत्तर प्रभु-प्रेम बढ़ा हुआ प्रतीत होगा । ज्यों ज्यों प्रेम बढ़ता जायेगा, त्यों त्यों प्रीति ही भक्ति में बदल जायेगी । भक्ति ही आज्ञा-पालन में परिवर्तित होगी और आज्ञा-पालन (वचन) ही असंग में रुपान्तरित होगा ।
असंगयोग प्रभु-प्रेम की पराकाष्ठा है, क्योंकि वहां प्रभु के साथ एकता हो गई है ।
प्रभु के प्रति बहुमान से ही इन्द्रभूति आदि गणधर प्रभु से प्राप्त कर सके थे । (६८00mmaooooooomamasoma कहे कलापूर्णसूरि - ३)