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शान्ति-तुष्टि, पुष्टि पामो, जीवो पामो मंगलमाल । आत्मिक ऋद्धि सिद्धि पामो, पामो सौए पद निर्वाण ॥
मांडवगढ के मंत्री 'झांझण' एक लाख से भी अधिक संख्या में छरी' पालक संघ के साथ सिद्धाचल आते हुए मार्ग में कर्णावती (अहमदाबाद) आये । राजा सारंगदेव ने कहा, 'मुख्य तीर्थ-यात्रियों को लेकर भोजन के लिए पधारें ।' ।
झांझण : 'राजन् ! यहां कोई मुख्य या साधारण नहीं हैं । सभी स्वधर्मी समान हैं। एक को भी छोड़कर मैं नहीं आ सकूँगा ।'
उसके बाद सम्पूर्ण गुजरात को झांझण ने भोजन कराया ।
भगवान भी कहते हैं : 'हे भाविक ! तू मेरा जाप तो करता है, परन्तु जाप सफल कब होता है जब सबके साथ मैत्री बनाये रखे ।' _ 'सवि जीव करूं' (भवी जीव करूं नहीं) इस प्रकार भगवान ने भावना भाई है । एक भी जीव बाकी होगा वहां मैं नहीं आ सकूगा ।' इस प्रकार भगवान कहते हैं ।
'निन्नाणवे के साथ मैत्री रखूगा, परन्तु एक के साथ तो नहीं ही रखूगा ।' ऐसा भाव होगा तब तक चाहे चातुर्मास करो, तप करो, निन्नाणवे यात्रा करो, उपधान आदि सब कुछ करो, परन्तु आत्मकल्याण नहीं होगा ।
'यहां से घर जायें, उससे पूर्व वैर का विसर्जन करके ही जायेंगे।' यह निश्चय करके ही जायें । यदि एक भी जीव बाकी रखा तो भगवान की कृपा-वृष्टि नहीं होगी।'
ऐसा माहौल देखकर हमारे पू. गुरुदेव (पू. आचार्यश्री गुणसागरसूरिजी) याद आते हैं, जिन्हों ने कहा था - 'जिनशासन में अनन्त शक्ति विद्यमान है, फिर भी वह परस्पर टकराने में नष्ट हो रही है। यदि सकल संघ एक होता हो तो मैं अपने गच्छ की सामाचारी या तिथि का आग्रह नहीं रखूगा ।'
ऐसा मैत्रीपूर्ण वातावरण देखकर स्व. पूज्यश्री की आत्मा अवश्य प्रसन्न हो रही होगी ।
पूज्य आचार्यश्री विजयकलाप्रभसूरिजी : जिनेश्वर भगवान द्वारा कथित आनन्ददायक बातों का रस लिया, स्थिर आसन से, (४२00wwwwwwwwwwwwwwwww कहे कलापूर्णसूरि - ३)