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इस श्रुत-सेवा में जैसा बन सके, अपना साथ देना सहर्ष स्वीकार किया। इस कार्य के सन्दर्भ में बीच-बीच में डॉ० शास्त्रीजी से विचार-चर्चा होती रही। उनके ज्ञान की गहराई, प्रज्ञा की उर्वरता तथा कार्य के प्रति निष्ठा देखकर मुझे असीम हर्ष
हुआ।
उक्त चारों ग्रन्थ सुसम्पादित, अनूदित, व्याख्यात रूप में प्रस्तुत हैं। डॉ० शास्त्री जो की लेखिनी को अपनी विशेषता है। विपुल भाव का संक्षिप्त शब्दावली में बाँध पाने में उनका विशेष कौशल है। अनुवाद की उनकी अपनी विशेष सुन्दर, प्राञ्जल शैली है। वह विद्वद् योग्य भी है और लोकगम्य भी। भाव की दृष्टि से आचार्य हरिभद्र सूरि के ग्रन्थ बड़े जटिल और कठिन है । परंपरा, विषय तथा भाषा तीनों में निष्णात विद्वान् ही ऐसे कार्य को कर सकते हैं । डॉ० शास्त्रीजी इस कार्य में सर्वथा सफल सिद्ध हुए हैं ।।
जैन योग के गहन अध्येताओं तथा अन्वेष्टाओं के लिए प्रस्तुत ग्रन्थ बड़े उपयोगी सिद्ध होंगे, ऐसा मेरा विश्वास है । जैन योग के अभ्यासी तथा जिज्ञासु जन भी इनसे लाभ उठा सकेंगे, ऐसी आशा है ।
___ इस प्रसंग में परम श्रद्धेय सन्त रत्न स्वामीजी श्री ब्रजलालजी म. सा० तथा परम सम्माननीय बहुश्रुत पण्डितरत्न युवाचार्य श्री मधुकर मुनिजी म० सा० को अत्यन्त श्रद्धा से नमन करती हूँ, जिनकी सुखद छत्रच्छाया में योगवाङमय का यह महत्त्वपूर्ण कार्य सम्पन्न हो सका।
___आचार्य हेमचन्द्र के योगशास्त्र के प्रकाशन के अवसर पर देश के महान् विद्वान्, चिन्तक एवं लेखक, राष्ट्रसन्त कविवर श्री अमर मुनिजी म० सा० ने योग के परिशीलन के रूप में बड़ी ही ठोस एवं बोधप्रद सामग्री प्रदान की थी, जो योगशास्त्र में पृष्ठभूमि के रूप में प्रकाशित है । सामग्री इतनी गवेषणापूर्ण तथा शाश्वत महत्ता एवं उपयोगिता लिये हुए है कि इस ग्रन्थ में भी "जैन योग : एक परिशीलन' शीर्षक से उसे उद्धृत किया गया है। इससे निःसन्देह सुधी पाठक महान् योगी आचार्य हरिभद्र सूरि के ग्रन्थों को समझने योग्य बौद्धिक पृष्ठभूमि प्राप्त करेंगे ।
ऐहिक तथा पारलौकिक दोनों दृष्टियों से जिनसे मैंने ऐसा दिव्य अवदान प्राप्त किया, जो मेरी संयम-यात्रा में सुधोपम पाथेय सिद्ध हुआ, उन परम श्रद्धास्पद पितृचरण (स्व० मुनि श्री मांगीलाल जी म. सा.) की जीवन-रेखा, जो मैंने योगशास्त्र में प्रस्तुत की थो, साधनानुरागी भाई-बहिनों के लिए प्रेरणाप्रद मानते हुए, यहाँ भी उद्धृत की गई है।
__ अन्ततः मेरी यही सत्कामना है, जीवन का रहस्य समझने तथा सत्य स्वायत्त करने की इच्छा रखने वाले सुधोजन इस ग्रन्थ से अवश्य लाभान्वित हों। नोखा चांदावतों का
-जैन साध्वी उमरावकुवर (राजस्थान)
'अर्चना'
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